एक बड़ी उपलब्धि..स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर निकाला स्टोन में तब्दील हो चुके बच्चे को
HNS24 NEWS July 29, 2021 0 COMMENTSरायपुर. 29 जुलाई 2021.* गरियाबंद निवासी एक 26 वर्षीय महिला कुछ दिनों पूर्व पेट में दर्द और पेट में पानी भरने के कारण होने वाले सूजन एसाइटिस की समस्या के साथ पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में भर्ती हुई। जांच में महिला के पेट में दुर्लभ लिथोपेडियन का पता चला जिसे स्टोन बेबी भी कहा जाता है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. ज्योति जायसवाल के नेतृत्व में स्टोन बेबी को बाहर निकालने के लिये पेट की सर्जरी की गई जिसमें करीब सात महीने के विकसित दुर्लभ स्टोन बेबी (मृत) को बाहर निकाला गया। सर्जरी के बाद महिला के पेट की परेशानी खत्म हो गई इसलिए अब वह डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है। विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल के मुताबिक बच्चेदानी के बाहर पेट यानी एब्डोमन में भ्रूण का विकास होकर स्टोन बेबी में बदल जाने की स्थिति बहुत ही दुर्लभ है। इस प्रकार के केस का प्रकाशन (पब्लिकेशन) भी मेडिकल जर्नल में बहुत ही कम देखने को मिलता है।
डॉ. ज्योति जायसवाल के अनुसार लिथोपेडियन या स्टोन बेबी तब बनता है जब गर्भावस्था, गर्भाशय के बजाय पेट में (एब्डामिनल प्रेगनेंसी) होती है। जब यह गर्भावस्था अंततः विफल हो जाती है और भ्रूण के पास पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो शरीर के पास भ्रूण को बाहर निकालने का कोई तरीका नहीं होता है। नतीजन, शरीर अपनी स्वयं की प्रतिरक्षा प्रक्रिया का उपयोग करके भ्रूण को पत्थर में बदल देता है जो शरीर को किसी भी ऐसी विदेशी वस्तु से बचाता है जिससे शरीर को कोई नुकसान न हो। ऊतकों का इस प्रकार का कैल्सिफिकेशन मां को संक्रमण से बचाता है। कई बार इससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होता लेकिन कई बार इसके पेट के अंदर रहने के कारण दूसरी समस्याएं भी जन्म लेने लगती हैं।
*कैल्सीफिकेशन* – कैल्सीफिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शरीर के ऊतकों में कैल्शियम का निर्माण होता है, जिससे ऊतक सख्त हो जाते हैं। यह एक सामान्य या असामान्य प्रक्रिया हो सकती है।
गरियाबंद में महिला की 15 दिन पहले नॉर्मल डिलीवरी हुई थी जिसमें महिला ने लगभग साढ़े सात महीने के एक अत्यंत कम वजनी एवं अपरिपक्व जीवित शिशु को जन्म दिया था। शिशु उपचार उपरांत भी नहीं ठीक हो पाया और उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार महिला के पेट में दो बेबी थे। एक जो बच्चेदानी (यूट्रस) के अंदर सामान्य शिशुओं की तरह पल रहा था एवं जीवित जन्म लिया और दूसरा बच्चेदानी के बाहर एवं पेट (आंत व आमाशय के आसपास) के अंदर स्टोन (मृत) में तब्दील हो चुका था।
26 वर्षीय इस महिला को राजधानी के एक अन्य अस्पताल से सोनोग्राफी की रिपोर्ट के साथ रेफर किया गया था। सोनोग्राफी रिपोर्ट के आधार पर इस बात की जानकारी मिली कि महिला के पेट के अंदर लगभग सात महीने का स्टोन बेबी है जो गर्भाशय के बाहर पेट में स्थित है और कैल्शियम के जमाव से पत्थर (लिथोपेडियन) में तब्दील हो चुका है।
डॉ. ज्योति जायसवाल ऑपरेशन के संबंध में जानकारी देती हुई बताती हैं कि स्त्री रोग विभाग में भर्ती होने के बाद महिला का एक्स रे, सीटी एंजियो, एम. आर. आई. कराया गया। स्टोन बेबी का पता लगने पर वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टरों से ओपिनियन लिया गया। साथ ही इस केस की जानकारी भी दी गई कि यदि बच्चा आमाशय और आंत की नसों से चिपका होगा तो सर्जरी के समय वैस्कुलर सर्जन की जरूरत पड़ सकती है। सर्जरी विभाग के डॉक्टरों को भी ऑपरेशन के दौरान इस संभावना के अंतर्गत साथ में रखा गया कि यदि बच्चेदानी के बाहर बच्चा अंतड़ियों और ओमेंटम के बीच में लिपटा हुआ होगा तो सर्जन की भी जरूरत पड़ेगी। बीते शुक्रवार को सुबह ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन के दौरान देखा गया कि स्टोन बेबी का आंवल बाहर था। आंवल यूट्रस के बाहर रूडीमेंटरी हार्न के टिश्यू से ब्लड सप्लाई ले रही थी। रूडीमेंटरी हार्न को काट करके स्टोन बेबी के साथ निकाल दिया गया। ऑपरेशन में ज्यादा दिक्कतें नहीं आई क्योंकि पेट के अंदर बेबी ने आस-पास के अंगों को प्रभावित नहीं किया था। इस ऑपरेशन में डॉ. ज्योति जायसवाल के साथ डॉ. रुचि गुप्ता, डॉ. स्मृति नाईक और डॉ. प्रियांश पांडे, एनेस्थीसिया से डॉ. मुकुंदा शामिल रहे।
*शरीर अपने बचाव के लिये अनुकूलन कर लेती है*
डॉ. ज्योति बताती हैं बतौर डॉक्टर मैंने मेडिकल कॉलेज रायपुर में यह तीसरा केस देखा है। इससे पहले जब मैं पी. जी. स्टूडेंट थी तब 22 साल पहले एक केस देखा था। उसके बाद कुछ सालों पूर्व एक और केस यहां आया था। संभवतः यह तीसरा केस है। इस केस में संभवतः दोनों प्रेगनेंसी एक साथ हुई हो और करीब एक डेढ़ महीने पहले उसका विकास बंद हो गया हो इसलिए गर्भाशय का जीवित बच्चा जिसने जन्म लिया वह साढ़े सात महीने का और यह करीब सात महीने का दिखाई दे रहा है। एब्डॉमिनल प्रेगनेंसी में पेट के अंदर बहुत कम बच्चे जीवित रह पाते हैं। ऐसा भी नहीं होता कि बच्चा पेट के अंदर इतना बड़ा हो गया हो कि डिलीवरी का टाइम आ गया हो और मरा नहीं। यह भी दुर्लभ है। पुराने मेडिकल लिटरेचर में ऐसे रेयर केस मिले हैं जिसमें एब्डॉमिनल प्रेगनेंसी जीवित पैदा हुई हो लेकिन ऐसे केस में आंवल कहीं न कहीं से ब्लड सप्लाई ले रही होती है। सामान्य प्रेगनेंसी में आंवल, बच्चेदानी के दीवार के अंदर से चिपकी होती है और वहां से खून लेकर बच्चे को बड़ा करती है। इस केस में बच्चा बच्चेदानी के रूडीमेट्री हार्न के अंदर से ब्लड सप्लाई ले रही थी। शरीर स्वयं को बचाने के लिये यह अनुकूलन कर लेती है ताकि स्टोन में तब्दील हो जाने से मां के शरीर को कोई नुकसान न हो।
अपने आप में बेहद दुर्लभ एवं जटिल किस्म के इस केस को मेडिकल जर्नल में प्रकाशन के लिये मरीज के परिजनों से स्वीकृति ले ली गई है। मेडिकल कॉलेज में भविष्य में चिकित्सा छात्रों के अध्ययन के लिए भी परिजनों की स्वीकृति पर स्टोन बेबी को सुरक्षित रख लिया गया है।
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