November 22, 2024
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रायपुर. 18 जून 2022. छत्तीसगढ़ की करीब एक प्रतिशत आबादी रक्त से संबंधित अनुवांशिक रोग सिकलसेल से पीड़ित है। प्रदेश के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में इसकी निःशुल्क जांच, दवाईयों एवं परामर्श की सुविधा है। सिकलसेल के मरीजों को जरुरत पड़ने पर लाइसेंसीकृत ब्लड-बैकों से निःशुल्क रक्त भी उपलब्ध कराया जाता है। स्वास्थ्य विभाग ने 19 जून को विश्व सिकलसेल दिवस के मौके पर सभी गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सिकलसेल जांच कराने की अपील की है। समय पर इसकी पहचान हो जाने से गर्भवती महिलाओं और बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

रायपुर में राज्य सिकलसेल संस्थान भी संचालित है जहां इसके मरीजों के टर्शरी केयर (Tertiary Care) की व्यवस्था है। संस्थान में इस बीमारी के बारे में अनुसंधान भी किया जा रहा है। प्रदेश भर के चिकित्सा अधिकारियों और लैब तकनीशियनों को यहां सिकलसेल के बारे में प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

सिकलसेल एक अनुवांशिक रोग है। यह रक्त चढ़ाने या कुपोषण के कारण नहीं होता है। यह रोग दो प्रकार का होता है – सिकलसेल रोग एसएस (SS) और सिकलसेल वाहक एएस (AS)।

सिकलसेल रोग एसएस में मरीज को गंभीर दर्द और तकलीफ हो सकती है और बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। डॉक्टर की सलाह अनुसार दवा लेने से मरीज लंबा जीवन जी सकता है और गंभीर तकलीफ से बच सकता है।

सिकलसेल वाहक एएस वाहक होता है। यह कोई रोग नहीं है। इसमें व्यक्ति को कोई शारीरिक कष्ट नहीं होता है और न ही उसे किसी इलाज की आवश्यकता होती है। किन्तु माता-पिता दोनों वाहक हो तो उनके बच्चे में सिकलसेल रोग की संभावना हो सकती है। अगली पीढ़ी में इसके प्रसार को रोकने के लिए विवाह पूर्व जांच करा लेना चाहिए। सिकलसेल वाहक अथवा रोग वाले व्यक्तियों को आपस में विवाह नहीं करना चाहिए।

*क्यों जरूरी है गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सिकलसेल जांच?*

गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सिकलसेल जांच से समय पर इसकी पहचान हो जाती है। इससे सिकलसेल गुण वाले व्यक्ति विवाह के समय जरूरी सावधानी बरत सकते हैं। साथ ही जिन व्यक्तियों में सिकलसेल रोग का पता चलता है उनका सही इलाज समय पर शुरू हो जाता है, जिससे वे तकलीफ से बच जाते हैं। बचपन में ही सिकलसेल की पहचान हो जाने से जरूरी सलाह व इलाज तत्काल शुरू किया जा सकता है। गर्भवती और उनके पति की जांच करना विशेष रूप से जरूरी है। इससे उनके साथ-साथ उनकी आने वाली संतान को भी सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।

सिकलसेल की पहली जांच सॉल्यूबिलिटी विधि से की जाती है। यह जांच आसानी से ए.एन.एम. व अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा उप स्वास्थ्य केन्द्र या शालाओं में की जा सकती है। इसके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। इसकी पुष्टि इलेक्ट्रोफोरेसिस जांच या एचपीएलसी (HPLC) जांच या प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट (POC) के माध्यम से की जाती है।

HNS24 NEWS

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