November 22, 2024
  • 1:16 pm सभी जनप्रतिनिधियों और किसानों को सहकारिता से जोड़ा जाए – केदार कश्यप
  • 1:13 pm मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ सीमेंट ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा आयोजित दीपावली मिलन समारोह में हुए शामिल
  • 12:37 pm सुकमा जिले में आज सुबह सुरक्षाबलों ने एक बड़ी कार्रवाई में 10 नक्सलियों को मार गिराया
  • 6:28 am मुख्यमंत्री ने सपरिवार देखी ‘द साबरमती रिपोर्ट’ फिल्म
  • 7:40 pm सुरक्षा बल का हिस्सा बनकर होता है गर्व: मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से बोली महिला कांस्टेबल

रायपुर : आपातकाल को लेकर राज्यसभा सांसद सरोज पांडे ने कहा  की बरसी पर प्रेस वार्ता के बिंदु.हम सब जानते हैं कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तब के प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल लगा दिया था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था।

इंदिरा गांधी की तानाशाही, भ्रष्टाचार एवं तमाम अनियमितता के खिलाफ देश भर में तब भयंकर आक्रोश था। विगत चुनाव में इंदिरा गांधी के प्रतिद्वंदी रहे राजनारायण  की चुनाव याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा  इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला देने पर उनके हाथ से सत्ता निकलती दिखी और तब 25 जून, 1975 की रात को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सलाह पर उस मसौदे पर मुहर लगाते हुए देश में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित कर दिया। लोकतंत्र को निलंबित कर दिया गया। आपातकाल की घोषणा होते ही स्वयंसेवकों और तमाम गैरकांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गयी। उन पर प्रताड़नाओं का सिलसिला सा चल पड़ा। देश भर से लाखों लोग सत्यागढ़ करके जेल गए और लाखों लोगों को गिरफ्तार किया गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी भाई देसाई, अटलबिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, के. आर. मलकानी, अरुण जेटली, जॉर्ज फर्नांडिस, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, रामविलास पासवान, शरद यादव, रामबहादुर राय समेत हज़ारों लोग गिरफ्तार कर लिए गए थे। अविभाजित मध्यप्रदेश से भी सारे नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे।
हम सब जानते हैं कि भारत में एक सदी भर लम्बे संघर्षों और हज़ारों हुतात्माओं के बलिदान के बाद हमने आज़ादी पायी थी। आज़ादी उपरांत संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र और संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष स्व. भीमराव अम्बेडकर जिन्हें हम संविधान निर्माता के रूप में जानते हैं, ने हमें ‘लोकतंत्र’ का यह उपहार दिया। बड़े ही त्याग और बलिदान से प्राप्त इस लोकतंत्र को कांग्रेस नेत्री तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आधी रात को ख़त्म कर देश को फिर से तानाशाही और गुलामी के उसी बियाबान में धकेल दिया था, जहां से निकल कर 1947 में भारत वापस आया था।
दशकों से हमें ‘सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म’ जैसे शब्दों से डराने की कोशिश की जाती है। जबकि तथ्य यह है कि ये दोनों शब्द आपातकाल से पहले हमारे संविधान का हिस्सा थे ही नहीं। आपातकाल में जब सारी ताकतें केवल एक व्यक्ति में केन्द्रित कर दी गयी थी, राष्ट्रपति, न्यायपालिका, संसद समेत सभी संवैधानिक निकाय निष्प्रभावी कर दिए गए थे, तब ‘पंथनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ इन दोनों शब्दों को संविधान के प्रस्तावना में चुपके से डाल दिए गए थे।
यह खासकर याद रखना होगा कि आपातकाल के दौरान अभिव्यक्ति की आज़ादी को भी बुरी कुचल दिया गया था। मीडिया पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाया गया था। इमरजेंसी लगाने के तुरंत बाद अख़बारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई, ताकि ज़्यादातर अख़बार अगले दिन आपातकाल का समाचार ना छाप सकें। आपातकाल के दौरान 3801 अख़बारों को ज़ब्त किया गया। 327 पत्रकारों को मीसा कानून के तहत जेल में बंद कर दिया गया। 290 अख़बारों में सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए गए। ब्रिटेन के The Times और The Guardian जैसे कई समाचार पत्रों के 7 संवाददाताओं को भारत से निकाल दिया गया। रॉयटर्स सहित कई विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के टेलीफोन और दूसरी सुविधाएं काट दी गई। 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता छीन ली गई। 29 विदेशी पत्रकारों को भारत में एंट्री देने से मना कर दिया गया।

छत्तीसगढ़ समेत जिन मुट्ठी भर प्रदेशों में कांग्रेस या उसके प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थित दलों का शासन है, वहां क्या हो रहा है, देख लीजिये। महाराष्ट्र में किस तरह से असहमति के कारण अभिनेत्री का घर ढाह दिया जाता है, पत्रकारों के साथ कैसा सलूक होता है। पालघर के साधुओं को भीड़ द्वारा लिंच कर देने की खबर दिखाने के कारण अर्णव गोस्वामी और उनकी टीम के साथ कांग्रेस समर्थित सरकार ने वहां कैसा बर्बर अत्याचार किया, यह उदाहरण सामने है, ये तमाम चीज़ें महज़ संयोग नहीं बल्कि प्रयोग है। यही आपातकाल वाली कांग्रेस की मूल वृत्ति है। आप पश्चिम बंगाल का उदाहरण देख लीजिये। कांग्रेस-कम्युनिस्टों के प्रत्यक्ष समर्थन से चुन कर आयी सरकार सत्ता में आते ही कार्यकर्ताओं द्वारा किस नृशंस तरीके से ह्त्या, बलात्कार और लूट आदि को अंजाम दे रही है। वास्तव में ऐसे तमाम उदाहरण आपातकाल जैसी मनोवृत्ति के ही हैं।
प्रदेश की अभी की कांग्रेस सरकार का उदाहरण तो सबसे नया और अनूठा है जहां किसी ट्वीट को रीट्वीट तक करना बड़ा अपराध बना दिया जाता है। जहां शासन के संसाधनों और समय का पूरा उपयोग भाजपा प्रवक्ता की आवाज़ को पुलिसिया दर दिखा कर दबाने, राष्ट्रीय पत्रकारों पर सौ-सौ मुकदमें दर्ज करने में लगा दिया जाता है। जहां कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस स्टेशन के सामने ही पत्रकारों से बर्बरता से हिंसा तक की जाती है, महज़ इसलिए क्योंकि वह आपसे असहमत है और आप वैसे ही उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी को ख़त्म करना चाहते हैं जैसा इंदिरा जी ने किया था।
आपातकाल के सन्दर्भ में एक ख़ास बात हमें बार-बार स्मरण रखने की है कि आज 2021 में हम जिस आज़ादी की हवा में सांस ले रहे हैं, यह आज़ादी हमने कांग्रेस से लड़ हासिल की है। फिरंगियों-अंग्रेजों से गांधी-सुभाष के नेतृत्व में लड़ कर हमें जो आज़ादी मिली थी, वह 1975 में हमने खो दी थी। कांग्रेस ने वह आज़ादी हमसे छीन ली थी। यह दूसरी आज़ादी हमने कांग्रेस से लड़ कर पायी है, कांग्रेस ने अपनी आज़ादी की विरासत को, तब ही ख़त्म कर दिया था। भारतीय संविधान और लोकतंत्र आज के भाजपा (तब का भारतीय जनसंघ) के इतिहास पुरुष अटल-आडवाणी-नानाजी जैसे राष्ट्रवादियों का हासिल किया लोकतंत्र है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का कमाया लोकतंत्र है यह जिस का आज हम आनंद ले रहे हैं। आज का लोकतंत्र कांग्रेस के कारण नहीं, बल्कि उसके बावजूद कायम है।

बात चाहे इस आपातकाल की हो या पहली आज़ादी के बाद देश के विभाजन की, या उसके बाद भी, कांग्रेस ने लगातार यह साबित किया है कि भारतीय लोकतंत्र के पवित्र शब्दों का, भारत के लोगों द्वारा आत्मार्पित भारत के संविधान की आत्मा का, देश की एकता और अखण्डता का कांग्रेस के लिए तब कोई महत्त्व नहीं रहता है जब उसकी सत्ता नहीं हो या जानेवाली हो। बांटों और राज करो की विभाजनकारी सिद्धांत हमेशा ही कांग्रेस, खासकर नेहरू परिवार का मूलमंत्र रहा है।
हमने अपने पुरखों के बलिदान से भले आज़ादी दुबारा हासिल करने में सफलता पायी हो, लेकिन इस आज़ादी पर खतरे हमेशा बने रहेंगे, जब तक कांग्रेस कायम है। आपातकाल भले 1977 में खत्म हो गया लेकिन, आपातकाल की मनोवृत्ति वाले तत्व और संगठन आज भी मौजूद हैं, हर क्षण-प्रतिपल लोकतंत्र विरोधी तत्वों के खतरे के प्रति सावधान रहने की ज़रुरत है। अगर आप इतिहास को याद नहीं रखेंगे तो उसे बार-बार दुहराने पर विवश होंगे। आपातकाल का यह इतिहास हमें इसलिए भी बार-बार हर बार स्मरण रखना चाहिए ताकि ऐसा कलंकित इतिहास कभी अब फिर दुहराने का दुस्साहस कांग्रेस या उस मनोवृत्ति वाला कोई दल कभी अब करने में सफल नहीं हो पाए। सत्ता के मद में चूर होकर कांग्रेस या ऐसा कोई दल फिर से इस भयानक इतिहास को दुहराने का साहस नहीं कर पाये, इस लिए हमेशा सचेत रहने की ज़रुरत

HNS24 NEWS

RELATED ARTICLES
LEAVE A COMMENT