भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन
HNS24 NEWS March 2, 2020 0 COMMENTSबिलासपुर : भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन में बोले 1-सतनाम पंथ के संस्थापक,गुरु घासीदास जी के नाम पर स्थापित इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आप सबके बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। यह एक सुखद संयोग है कि आठवें दीक्षांत समारोह का आयोजन आज सोमवार के दिन किया गया है। गुरु घासीदास जी के अनुयायी सोमवार के दिन को विशेष तौर पर शुभ मानते हैं क्योंकि सोमवार के दिन ही सन् 1756 ईसवी में गुरु घासीदास जी का अवतरण हुआ था।
2.गुरु घासीदास जी ने समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने लोगों को आपस में मेल-जोल तथा समरसता से रहने और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उनका संदेश था कि – मनखे-मनखे एक समान अर्थात सभी मनुष्य एक समान हैं। वे कहते थे कि सत्य मानव का आभूषण है। सत्य ही सेवा, करुणा,चैतन्य, प्रेम,संयम, शील तथा चरित्र का प्रतीक है। इसलिए लोगों को, सतनाम का स्मरण और ध्यान करना चाहिए तथा सभी धर्मों के सत्य वचनों का आदर करना चाहिए। सतनाम पंथ के अनुयायी,कर्म का अनुसरण करने और नियम-कानूनों का सम्मान करने के लिए जाने जाते हैं।
3.मुझे, गुरु घासीदास जी की पावन जन्मभूमि ‘गिरौदपुरी धाम’ की यात्रा के सुअवसर भी प्राप्त हुए हैं। वहां पर मैंने, शांति व सद्भाव का संदेश देने वाले जैतखाम की भव्यता के दर्शन भी किए। मुझे स्मरण है कि पिछली बार 06 नवम्बर,2017 की यात्रा के समय मुझे जैतखाम की एक प्रतिकृति भी भेंट की गई थी,जिसे मैंने राष्ट्रपति भवन में समुचित स्थान दिया है।
देवियो और सज्जनो,
4.छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक सौंदर्य,वन संपदा और खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में है। छत्तीसगढ़ की इस धरती को सर्वश्री जगन्नाथ प्रसाद भानु, माधवराव सप्रे,मुकुटधर पांडे, वीर नारायण सिंह,पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, लोचन प्रसाद पांडे, ई. राघवेन्द्र राव,रविशंकर शुक्ल, बैरिस्टर छेदीलाल और तीजनबाई जैसे अनेक विशिष्ट लोगों की कर्म-भूमि होने का गौरव प्राप्त है। यहां की समृद्ध लोक-संस्कृति के प्रतीक पंथी, सुआ और करमा जैसे लोकनृत्य तथा दादरिया व पंडवानी जैसे लोकगीत पूरी दुनिया में जाने जाते हैं।
5.ऐसा माना जाता है कि प्राचीन दक्षिण कौशल साम्राज्य की राजधानी इसी बिलासपुर-रतनपुर में थी और उस समय यह स्थान भाषा,साहित्य व कला का महत्वपूर्ण केन्द्र था। अपनी उत्कृष्ट शिक्षा संस्थाओं और उच्च न्यायालय के कारण आज भी, बिलासपुर को छत्तीसगढ़ की ‘न्यायधानी’ कहा जाता है।
प्रिय विद्यार्थियो,
6.आप में से जिन विद्यार्थियों को आज स्वर्ण पदक और उपाधियां प्राप्त हो रही है,उन सबको मैं बधाई देता हूं। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले 74 विद्यार्थियों में से बेटियों की संख्या 44 है। नामांकन में भी उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। बेटियों की इन उपलब्धियों को देखकर,यह भरोसा होता है कि अवसर मिलने पर बेटियां हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं। भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए यह शुभ संकेत है।
7.शैक्षिक जीवन में आप सबको जो सफलता प्राप्त हुई है, उसमें आपके माता-पिता और शिक्षकों के धैर्य, सहायता,मार्गदर्शन और स्नेह की बहुत बड़ी भूमिका है। उनके समर्पण तथा प्रतिबद्धता की झलक आज मुझे उनके संतुष्टि भरे चेहरों पर दिखाई दे रही है। उपलब्धियों की ऊर्जा और उल्लास से भरे इस वातावरण में, सभी अभिभावकों, शिक्षकों और पूरे विश्वविद्यालय परिवार की मैं सराहना करता हूं।
8.एक बात की ओर आप सबका ध्यान दिलाना मुझे प्रासंगिक लगता है कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना ही नहीं बल्कि एक अच्छा इंसान बनना भी है। विद्या में नैतिक मूल्यों का समावेश आवश्यक है क्योंकि नैतिक मूल्यों के बिना प्राप्त विद्या,समाज के लिए कल्याणकारी नहीं हो सकती।
प्रिय शिक्षकगण,
9.हर विश्वविद्यालय का यह कर्तव्य है कि वह विद्यार्थियों में ईमानदारी, अनुशासन,सहिष्णुता, कानून के प्रति सम्मान और समय-पालन जैसे जीवन मूल्यों का संचार करे। तभी विद्यार्थी-गण,एक लोकतांत्रिक देश के सच्चे नागरिक बन सकेंगे और कानून के शासन को मजबूत बनाएंगे।
10.आज, दुनिया में भारत की पहचान, एक आधुनिक व उद्यमी राष्ट्र के रूप में हो रही है। इसके लिए सभी देशवासी,विशेषकर हमारे परिश्रमी युवा, बधाई के पात्र हैं। आप जैसे युवाओं की ऊर्जा के बल पर ही,हम आज दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप इको-सिस्टम तैयार कर सके हैं और आधुनिक प्रौद्योगिकी से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान तक के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल करने में सफल हुए हैं।
11.छत्तीसगढ़ में आदिवासी भाई-बहनों की बहुत बड़ी आबादी है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय हमारे आदिवासी बेटे-बेटियों के जीवन में शिक्षा की ज्योति का प्रसार कर रहा है। मुझे यह बताया गया है कि विश्वविद्यालय ने शिक्षा एवं शोध के संबंध में नवाचारों को प्रोत्साहन देने के साथ ही विलुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिए Endangered Language Centre की स्थापना की है। इन भाषाओं का संरक्षण समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भाषाओं को बचाने से हमारी परम्पराओं और संस्कृति की भी रक्षा हो सकेगी।
12.पूरी दुनिया के उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों का अनुभव यही रहा है कि उनके पूर्व विद्यार्थी,विश्वविद्यालय की कीर्ति के ध्वजवाहक होते हैं। मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों में से कई प्रशासक,टेक्नोक्रेट, वैज्ञानिक आदि देश और दुनिया के अनेक उत्कृष्ट संस्थानों में कार्य कर रहे हैं। उन सभी से मेरा अनुरोध है कि वे अपना कुछ समय और संसाधन, विश्वविद्यालय के शैक्षिक व शोध-कार्यों को दें और विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें।
देवियो और सज्जनो,
13.पिछली बार, जब मैं छत्तीसगढ़ आया था तो हीरानार में महिला स्व-सहायता समूहों और किसान समूहों के भाई-बहनों से भी मिला था। वे लोग मिल-जुलकर एक ही परिसर में खेती,बागवानी, पशुपालन,मुर्गीपालन, शहद उत्पादन,जैविक खेती और राइस-मिल चलाने जैसे कार्य करते हुए सफलता की मिसाल पेश कर रहे हैं। उस यात्रा के दौरान मैंने नक्सली हिंसा से प्रभावित परिवारों के बच्चों के लिए स्थापित आस्था विद्या मंदिर में विद्यार्थियों से उनके अनुभव सुने थे और उनकी संकल्प-शक्ति भी देखी थी। मुझे विश्वास है कि नक्सलवाद की विचारधारा से भ्रमित कुछ लोगों द्वारा की जाने वाली हिंसा से पीड़ित परिवारों को,शिक्षा की रोशनी के सहारे आगे बढ़ने का जो अवसर प्राप्त हो रहा है,उससे हिंसा और आतंक का दुष्प्रभाव कम किया जा सकेगा। इस दिशा में,प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा नौजवानों को रोजगार,खेती आदि के लिए दी जाने वाली सुविधाएं सराहनीय हैं।
देवियो और सज्जनो,
14.यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि कुलाधिपति के रूप में विश्वविद्यालय को अशोक मोदक जैसे शिक्षाविद् और प्रोफेसर अंजिला गुप्ता जैसी ऊर्जावान कुलपति का नेतृत्व प्राप्त है। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने स्वयं भी आदिवासी भाई-बहनों के उत्थान के सबल प्रयास किए हैं। इस नेतृत्व की पृष्ठभूमि में,गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को अपने लिए कुछ महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करने चाहिए जैसे कि आने वाले 10 वर्षों में यह विश्वविद्यालय देश के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में शामिल हो या ‘Centre of Excellence’ बने। लक्ष्य ऊंचा हो और संकल्प मजबूत हो, तो प्रयास अपने-आप प्रबल हो जाते हैं।
15.अन्त में एक बार फिर,मैं आज के दीक्षान्त समारोह में डिग्री व अवार्ड प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं। मेरी कामना है कि जीवन के नए चरण में प्रवेश करते हुए, आप सब अपने शिक्षकों से मिली सीख तथा माता-पिता एवं बड़ों से मिले आशीर्वाद के बल पर, खूब सफलता प्राप्त करें।
शुभास्ते पंथान: सन्तु! आपका जीवन-पथ मंगलमय हो।
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