November 22, 2024
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छत्तीसगढ़ : रायपुर कांग्रेस पार्टी के एआईसीसी के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला, व एआईसीसी मीडिया पेनलिस्ट जयवीर शेरगिल पत्रकारों को संबोधित करते हुए बोला कि नोटबंदी की ‘दूसरी बरसी’ पर आखिरकार कल छत्तीसगढ़ में मोदी जी को अपनी षडयंत्रकारी चुप्पी तोड़नी ही पड़ी। देश के गरीब, किसान, मध्यमवर्ग, दुकानदार व व्यवसायी की कमाई लूटने वाली नोटबंदी की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे मोदी जी ऐसे ही लग रहे थे, जैसे – ‘अंधेर नगरी, चौपट राजा’।

 

‘नोटबंदी’ आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला था, जिसने 120 बेकसूर लोगों की बैंकों की लाईनों में जान ले ली, लाखों नौकरियां छीन लीं तथा उद्योग धंधा चौपट कर दिया। दूसरी तरफ कालाधन वालों की हो गई, ‘ऐश’, जिन्होंने रातों रात ‘सफेद’ बना लिया सारा ‘कैश’।

नोटबंदी घोटाले की जिम्मेदारी लेने की बजाए घोटाला उजागर करने वाले विपक्ष पर इल्ज़ाम लगाना ऐसे ही है, जैसे – पहले चोरी, फिर सीनाज़ोरी।

क्या नोटबंदी ‘कालाधन सफेद बनाने’ का आज़ाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है?

नोटबंदी से ठीक पहले भाजपा व आरएसएस ने सैकड़ों करोड़ रु. की संपत्ति पूरे देश में खरीदी। कांग्रेस पार्टी ने बिहार में कम कीमतों पर खरीदी 8 संपत्तियों की सूची व उड़ीसा में खरीदी 18 संपत्तियों की सूची तथा कागजात सार्वजनिक किए थे। क्या भाजपा व आरएसएस को नोटबंदी के निर्णय की जानकारी पहले से थी? क्या कारण है कि भाजपा व आरएसएस ने इतने सैकड़ों व हजारों करोड़ की संपत्ति खरीदी व इसे सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया? क्या इसकी जाँच नहीं होनी चाहिए?

नोटबंदी से ठीक पहले सितंबर, 2016 में बैंकों में यकायक 5,88,600 करोड़ रुपया अतिरिक्त जमा हुआ। इसमें से 3 लाख करोड़ फिक्स्ड डिपॉजि़ट में मात्र 15 दिन में जमा हुआ (1 सितंबर से 15 सितंबर, 2016)। क्या इससे साबित नहीं होता कि नोटबंदी की एडवांस जानकारी दे दी गई थी? क्या कारण है कि 5,88,600 करोड़ रुपया जमा कराने वाले किसी व्यक्ति की जाँच नहीं हुई?

नोटबंदी वाले दिन, यानि 8 नवंबर, 2016 को भाजपा की कलकत्ता इकाई के खाता नंबर 554510034 में 500 व 100 रु. के तीन करोड़ रुपए जमा करवाए गए। ऐसा क्यों? बार-बार मांग उठाने पर भी, आज तक भाजपा व आरएसएस ने यह नहीं बताया कि 1 मार्च, 2016 से 8 नवंबर, 2016 के बीच में उनके बैंक खातों में कितना पैसा जमा हुआ? क्या इसकी जाँच नहीं होनी चाहिए?

कमाल की बात यह है कि नोटबंदी के एन बाद यानि,10 नवंबर, 2016 को इंदिरापुरम गाजि़याबाद, उत्तरप्रदेश में एक मारुति स्विफ्ट कार,

रजिस्ट्रेशन नंबर ,एचआर-26एआर-9662से तीन करोड़ रुपया बोरियों में पकड़ा गया। कार में श्री सिद्धार्थ शुक्ला व अनूप अग्रवाल थे, जिन्होंने बताया कि वो यह कैश पैसा भाजपा के लखनऊ कार्यालय में ले जा रहे थे। गाजि़याबाद भाजपा अध्यक्ष, अशोक मोंगा, पुलिस स्टेशन आए व लिखकर दिया कि यह पैसा भाजपा के दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय से भाजपा के लखनऊ कार्यालय में जा रहा था। मोदी जी देश को कहते हैं कि चाय भी पेटीएम से पियो, तो फिर भाजपाई करोड़ों रुपया गाड़ी की डिक्की में भरकर क्यो ले जा रहे थे।  मोदी जी व अमित शाह जी के चहेते, कर्नाटक के पूर्व मंत्री व भाजपा नेता, जी. जनार्दन रेड्डी (बेल्लारी ब्रदर्स) के सहयोगी, रमेश गौड़ा ने नोटबंदी के बाद खुदकुशी कर ली तथा सुसाईड नोट में लिखा कि 100 करोड़ रु. का कालाधन भाजपा नेताओं द्वारा बदला जा रहा था। जाँच क्यों नहीं हुई।

हद तो तब हो गई, जब अहमदाबाद, गुजरात के महेश शाह ने कालाधन डिस्क्लोजर स्कीम में 13,860 करोड़ का कालाधन डिक्लेयर कर दिया। महेश शाह ने कहा कि वो उन सब राजनेताओं तथा अफसरों का नाम बताएगा, जिनका यह कालाधन था। गुजरात पुलिस ने उसे टेलीविजन स्टूडियो से ही गिरफ्तार कर लिया। बाद में वह मुकर गया। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपाई नेता, सुरेश भाई मेहता ने खुले तौर से कहा कि महेश शाह के संबंध, श्री नरेंद्र मोदी व श्री अमित शाह से रहे थे। जाँच क्यों नहीं हुई?

. क्या भाजपा अध्यक्ष, श्री अमित शाह व भाजपा नेताओं की जाँच हुई? – नोटबंदी के बाद मात्र 5 दिनों में यानि, 10 नवंबर से 14 नवंबर, 2016 के बीच अहमदाबाद जिला को -ऑपरेटिव बैंक में 745.58 करोड़ रु. के पुराने नोट जमा हो गए। इस बैंक के डायरेक्टर, भाजपा अध्यक्ष, श्री अमित शाह हैं, जो इससे पहले बैंक के चेयरमैन भी रहे हैं। 7 मई, 2018 के आरटीआई जवाब (A1 व A2) में बताया गया कि देश में किसी भी जिला को-ऑपरेटिव बैंक में जमा हई पुराने नोटों की यह सबसे बड़ी राशि थी। ऐसा क्यों? क्या इसकी जाँच हुई? क्या श्री अमित शाह की जाँच हुई?यही नहीं, अकेले, गुजरात के 11 जिला को-ऑपरेटिव बैंकों में, जिनके संचालक भाजपाई नेता व मंत्री हैं, नोटबंदी 5 दिनों में अप्रत्याशित तौर से 3881.51 करोड़ रु. के पुराने नोट जमा हो गए (A3)। पूरे देश में भी भाजपा शासित प्रदेशों में जिला कोऑपरेटिव बैंकों में 14,293.71 करोड़ रु. के पुराने नोट जमा हुए, जो देश में को-ऑपरेटिव बैंकों में जमा पुराने नोटों का 65 प्रतिशत है। क्या इसकी कभी जाँच हुई?

सारा ‘कालाधन’ कहां गया? – 24 अगस्त, 2018 की आरबीआई रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के दिन चलन में 15.44 लाख करोड़ नोटों में से 15.31 लाख करोड़ पुराने नोट तो बैंकों में जमा हो गए, यानि 99.9 प्रतिशत। बाकी बचा पैसा भी रॉयल बैंक ऑफ नेपाल व भूटान तथा अदालतों में केस प्रॉपर्टी के तौर पर जमा है। तो फिर कालाधन कहां गया?

दिसंबर, 2016 को मोदी सरकार ने देश की सुप्रीम कोर्ट को कहा था कि 15.44 लाख करोड़ पुराने नोटों में 3 लाख करोड़ कालाधन है, जो जमा नहीं होगा और जब्त हो जाएगा। क्या भाजपाई झूठ रंगे हाथों नहीं पकड़ी गई? 3 लाख करोड़ कालाधन पकड़ना तो दूर की बात, अब सरकार आरबीआई के रिजर्व खाते का 3 लाख करोड़ जबरदस्ती निकालने पर उतारू है, जो 71 साल में कभी नहीं हुआ।फर्जी नोट कहां गए? क्या यह भी भाजपाई ‘जुमला’ निकला? – साल 2017-18 आरबीआई रिपोर्ट के मुताबिक 15.44 लाख करोड़ के पुराने नोटों में से मात्र 58.30 करोड़ ही नकली नोट पाए गए, यानि 0.0034 प्रतिशत। क्या भाजपाई बताएंगे कि फिर नकली नोट कहां गए? क्या उग्रवाद व नक्सलवाद खत्म हो गया? – नोटबंदी के बाद अकेले जम्मू-कश्मीर में 86 बड़े उग्रवादी हमले हुए, जिनमें 127 जवान शहीद हुए व 99 नागरिक मारे गए। नक्सलवाद ने तो और भी पैर पसारे। नोटबंदी के बाद फरवरी, 2018 तक 1030 नक्सलवादी हमले हुए, जिनमें 114 जवान शहीद हुए। हाल में ही 30 अक्टूबर, 2018 को छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में शहीद हुए 4 जवानों व 1 पत्रकार की शहादत सबको याद है। कल ही 8 नवंबर, 2018 को छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में एक जवान और शहीद हो गया। तो क्या मोदी सरकार ने देश को जानबूझकर गुमराह किया?

क्या नए नोट छापने व बांटने की कीमत नोटबंदी की बचत से 300 प्रतिशत अधिक है? – आरबीआई के मुताबिक साल, 2016-17 व 2017-18 में नए नोट छापने तथा लिक्विडिटी ऑपरेशन की कीमत 30,303 करोड़ रु. है, जबकि नोटबंदी में मात्र, 10,720 करोड़ रु. वापस जमा नहीं हो पाए (वो भी अगर रॉयल बैंक ऑफ भूटान व नेपाल में जमा पुराने नोटों की गिनती न की जाए)। क्या भाजपाई बताएंगे कि इतने बड़े आर्थिक नुकसान के लिए कौन जिम्मेवार है?  क्या देश में पूर्णतया डिजिटल भुगतान लागू हो गया? – 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के समय देश में 17.71 लाख करोड़ ‘कैश’ चलन में था। 28 अक्टूबर, 2018 को चलन में कैश की मात्रा बढ़कर 19.61 लाख करोड़ हो गई है। तो फिर डिजिटल भुगतान कैसे बढ़ा? क्या नोटबंदी ने रोजी रोटी पर प्रहार नहीं किया? – सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी से सीधे तौर पर 15 लाख नौकरियां गईं तथा देश की अर्थव्यवस्था को 3 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। यही नहीं बैंकों की लाईनों में 120 से अधिक लोगों की मौत हो गई। सूरत (गुजरात) से लेकर तिरुपुर (तमिलानाडु) तक व आसनसोल (पश्चिम बंगाल) तक सब धंधे चौपट हो गए, महिलाओं की सारी बचत लूट ली गई। क्या यह सीधे तौर पर आर्थिक आतंकवाद नहीं?13 नवंबर, 2016 को घडि़याली आंसू बहाते हुए, मोदी जी ने कहा था, ‘‘मैंने देश से सिर्फ 50 दिन मांगे हैं. . . उसके बाद अगर मेरी कोई गलती निकल जाए, तो जिस चौराहे पर खड़ा करेंगे, देश जो सजा देगा, उसे भुगतने के लिए तैयार हूँ।’’

HNS24 NEWS

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