रायपुर : भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने दंतेवाड़ा के बैलाडीला की पहाड़ियों पर प्रदर्शनरत आदिवासियों की भावनाओं का पार्टी की ओर से समर्थन किया है। उसेंडी ने इस मामले में राज्य सरकार पर दोहरा मापदंड अपनाकर आदिवासियों व प्रदेश को गुमराह करने का आरोप लगाया है।भाजपा प्रदेश अध्यक्ष उसेंडी ने कहा कि जल, जंगल और जमीन का मुद्दा आदिवासी भाई-बहनों के लिए उनकी अस्मिता और आत्मा से जुड़ा मुद्दा है और भाजपा उनकी इस भावना का पूरा सम्मान व समर्थन करती है।उसेंडी ने राज्य सरकार से प्रकृतिजीवी आदिवासी समाज से तत्काल सम्पर्क और संवाद करके इस समस्या के समाधान की पहल करने की मांग की ताकि नापाक इरादे रखने वाली ताकतें इस मौके का गलत फायदा उठाकर मसले को गलत दिशा में न मोड़ सकें। सरकार को समस्या के सभी पहलुओं पर खुले मन से चर्चा करके समाधान की सर्वसम्मत राह निकालनी चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि बात-बात पर प्रतिक्रिया देने वाली प्रदेश सरकार और उसके सिपलसालारों की मंडली ने इस प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है जो उनकी अकर्मण्यता व गैर-जिम्मेदाराना रवैये को रेखांकित कर रही है। उसेंडी ने कहा कि बैलाडीला आयरन ओर खदान के संबंध में पिछले कुछ दिनांे से मीडिया में तरह तरह की बातें सामने आ रही हैं। बैलाडीला आयरन ओर का आवंटन केन्द्र सरकार द्वारा एनएमडीसी और सीएमडीसी के संयुक्त उपक्रम को किया गया है। अडानी कंपनी को एनएमडीसी और सीएमडीसी के संयुक्त उपक्रम द्वारा खुली निविदा के माध्यम से खनन हेतु ठेकेदार के रूप में काम प्रदान किया गया है। यदि कांग्रेस की वर्तमान सरकार इस खदान के पक्ष में नहीं थी तो अप्रैल 2019 में पर्यावरण विभाग ने बवदेमदज जव वचमतंजम की अनुमति का विरोध क्यों नहीं किया? कांग्रेस का यह दोहरा मापदंड है कि एक तरफ वह खदान का विरोध करवाती है और दूसरी तरफ खदान खनन की अनुमति में सहयोग करती है। कांग्रेस की सरकार अपनी मंशा स्पष्ट करे कि वह किसके पक्ष में है? उसेंडी ने कहा कि एक तरफ भूपेश बघेल राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हैं कि अडानी को खदान का आवंटन भाजपा सरकार के समय हुआ और दूसरी तरफ गिदौरी-पितौरी कोयला खदान (जिसका आवंटन राज्य सरकार के सीएसईबी को हुआ है) के खनन का कार्य अडानी कंपनी को लोकसभा चुनाव के एक महीने पहले 848 रुपए प्रति टन के दर पर दे दिया जाता है। तो यहां यह सवाल उठता है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार इस मामले में नौटंकी के अलावा और कुछ नहीं कर रही है। मुख्यमंत्री बघेल को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इतनी उच्च दर पर कोयला खदान का आवंटन अडानी कंपनी को क्यों किया गया, जबकि इससे मिलती-जुलती गारे पलमा कोयला खदान भाजपा सरकार द्वारा लगभग 550 रुपए प्रति टन की दर से खनन हेतु दी गई। सरकार यह भी स्पष्ट करे कि दोनों कोयला खदानों की दरों में इतना अंतर क्यों है?
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