November 22, 2024
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रायपुर।छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य में खरीदे गए धान में से 14 लाख क्विंटल से अधिक धान की कमी समितियों के मिलान में पाई गई है। प्रदेश में किसानों से 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की गई थी इस हिसाब से देखा जाए तो करीब साढ़े तीन सौ करोड़ से अधिक का नुकसान समितियों में धान की कमी के कारण हो रहा है। धान खरीदी के बाद समितियों से धान को सीधे उठाव करने की रणनीति बनी थी। बाद में मिलरों को संग्रहण केंद्र धान देने से मार्कफेड को न केवल परिवहन व्यय में नुकसान उठाना पड़ा वही समितियों में धान का उठाव समय पर नहीं होने से धान के सड़ने और अन्य कारणों से घाटा उठाना पड़ रहा है।

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी और धान जिन समितियों से उठाव कर लिया गया है, उनका हिसाब चल रहा है। मार्कफेड ने अब तक 2311 समितियों में से 2171 समितियों में धान के उठाव का मिलान पूरा कर लिया है। यहां पर सूखत और अन्य कारणों से स्टॉक में कमी पाई गई है। अभी भी 100 से अधिक समितियों का मिलान बाकी है। स्टॉक मिलान के बाद मार्कफेड यह हिसाब किताब करने में लगा है कि सूखत और अन्य कारणों से कितना नुकसान हुआ है। धान का परिवहन मार्कफेड को खरीदने के 72 घंटे में करना था। परिवहन में कई महीनों की देरी हुई। गर्मी में मार्च से अप्रैल मई तक धान सूख कर कम हो गया। इस बीच कोरोना की दूसरी लहर आने के बाद परिवहन प्रभावित हुआ। जून से बारिश शुरू हो गई, जिससे समितियों में रखा धन भीगा और कहीं-कहीं पर खराब भी हुआ। धान अगर भीग कर खराब हो या अन्य वजह से इसे सूखत के रूप में दर्ज किया जाता है। समिति स्तर पर सूखत में 1 प्रतिशत हानि को मान्य करती है।

इन जिलों में कमी अधिक

प्रदेश की सभी सोसायटियों में धान की मात्रा में कमी आई है। इनमें से सबसे अधिक कमी राजनांदगांव में 1 लाख 77 हजार क्विंटल, बेमेतरा में 1लाख 92 हजार क्विंटल, बलौदाबाजार 1.15 लाख क्विंटल , महासमुंद 1.41 लाख क्विंटल, बालोद 90 हजार क्विंटल, बिलासपुर में 89 हजार क्विंटल, कांकेर में 60 हजार क्विंटल, और रायपुर की समितियों में 68 हजार से अधिक कमी पाई गई है। जिन जिलों में धान की सूखत में कोई कमी नहीं आई है उनमें दंतेवाड़ा, कोरबा, जशुपर सहित कई अन्य जिले शामिल हैं।

इस वजह से नुकसान

सहकारिता विभाग के अधिकारियों के अनुसार धान की बरबादी का कारण उपार्जन नीति में गड़बड़ी को माना जाता है। पूर्व मुख्य सचिव ने धान खरीद केंद्र से मार्कफेड के संग्रहण केंद्र में लाने की बजाय सीधे मिलर को दिया जाए। ऐसा करने से मार्कफेड को करोड़ों का परिवहन व्यय बचेगा। अब व्यवस्था तो कर दी गई, लेकिन खरीदी केंद्रों से ही धान का परिवहन नहीं हो सका। वहां धान सूखा,सड़ा. चूहे खा गए और नुकसान सहना पड़ रहा है।

HNS24 NEWS

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