राफेल सौदे में मोदी सरकार लगातार देश को गुमराह कर रही है : सुशील आनंद
HNS24 NEWS April 11, 2019 0 COMMENTSछत्तीसगढ़ : रायपुर 11 अप्रैल 2019 राफेल विमान सौदा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिर से सुनवाई के निर्णय से इस घोटाले का सच सामने आने का रास्ता एक बार फिर से खुल गया। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा है कि राफेल सौदे में मोदी सरकार लगातार देश को गुमराह कर रही है। राफेल सौदे की इंडियन नेगो निसएसिंग टीम ( INT) की रिपोर्ट से भी जगजाहिर हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता और संसद को सफेद झूठ बोलकर गुमराह किया है ताकि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार जालसाजी व देश की सुरक्षा पर जो षड़यंत्र हुआ है, उस पर परदा डाला जा सके। इंडियन नेगोसिएशन टीम के मुताबिक ही 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की कीमत यूरो 8,460 मिलियन (63,450 करोड़ रु. 1 यूरो = 75 रु.) है, न कि यूरो 7,890 मिलियन (59,175 करोड़ रु.), जैसा कि मोदी सरकार द्वारा बेईमानी से दावा किया जा रहा है। प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने राफेल जहाज की कीमत कम होने का दावा कर देश को साजिशन गुमराह किया। यूपीए-कांग्रेस सरकार द्वारा खरीदे जा रहे 126 राफेल लड़ाकू जहाज की कीमत में यूरो 574 मिलियन (4,305 करोड़ रु.) की बैंक गारंटी शामिल थी। प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा सौदों की केबिनेट कमेटी (CCS) की बैठक में राफेल बनाने वाली डसॉल्ट एविएशन को फायदा पहुंचाने के लिए बैंक गारंटी की शर्त को ही खारिज कर दिया, हालांकि वित्त मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्रालय ने लिखित तौर से बैंक गारंटी की शर्त को अनिवार्य कहा था। जैसा सीएजी की रिपोर्ट में भी कहा गया है, इससे सीधे सीधे राफेल बनाने वाली डसॉल्ट एविएशन को यूरो 574 मिलियन (4,305 करोड़ रु.) का फायदा पहुंचाया गया। रक्षा सौदों में सबसे महंगी वस्तु तकनीकी हस्तांतरण (Transfer of Technology) है। आईएनटी ने भी माना कि यूपीए-कांग्रेस द्वारा खरीदे जा रहे 126 लड़ाकू जहाज सौदे में तकनीकी हस्तांतरण की लागत शामिल थी। जबकि मोदी सरकार द्वारा खरीदे जा रहे 36 राफेल लड़ाकू जहाजों में तकनीकी हस्तांतरण ( Tranfer of Technology) शामिल ही नहीं है। इसके बावजूद भी 36 राफेल जहाजों की कीमत अधिक कैसे हो सकती है? इस प्रकार से 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की कीमत देश को 10,300 मिलियन यूरो (77,250 करोड़ रु.) (9000 मिलियन यूरो+1300 मिलियन यूरो) पड़ेगी। भ्रष्टाचार साफ है। 24 नवंबर, 2015 को रक्षा सचिव, भारत सरकार ने रक्षामंत्री को फाईल पर लिखकर एतराज किया कि प्रधानमंत्री कार्यालय इंडियन नेगोसिएशन टीम (INT) को दरकिनार कर राफेल सौदे की सीधे नेगोसिएशन कर रहा है, जिससे INT की स्थिति बहुत कमजोर पड़ गई है। जब यह सनसनीखेज खुलासा हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी जी ने दबाव डालकर रक्षा सचिव से यह बयान दिलवाया कि ‘पीएमओ ने अंतिम नेगासिएशन में कोई दखलंदाजी नहीं की’। पर आईएनटी की फाईल नोटिंग के पैरा 11 से साफ है कि अंतिम नेगासिएशन श्री अजीत डोवाल द्वारा 12 व 13 जनवरी, 2016 को पेरिस, फ्रांस में की गई, जिसके आधार पर 13 जनवरी, 2016 को 36 जहाज खरीदने का फैसला किया गया। श्री अजीत डोवाल न तो इंडियन नेगोसिएशन टीम का हिस्सा थे और न ही कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी द्वारा उन्हें अधिकृत किया गया था। तो आईएनटी को दरकिनार कर उन्होंने किस हैसियत से 36 लड़ाकू जहाज के सौदे का निर्णय किया? साफ है यह सब प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देश पर हो रहा था। राफेल सौदे में गड़बड़झाला और भ्रष्टाचार साफ है। साफ है कि प्रधानमंत्री ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए राफेल बनाने वाली डसॉल्ट एविएशन को नाजायज फायदा पहुंचा सरकारी खजाने को चूना लगाया है। यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 के Section 13 (1)(क) तथा इंडियन पेनल कोड यानि भारतीय दंडसंहिता का मामला बनता है। अब प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी व इस षडयंत्र से जुड़े सब लोगों पर एफआईआर दर्ज कर जाँच का समय आ गया है।
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