November 22, 2024
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चित्रा पटेल : रायपुर : किसी भी देश की संपन्नता दो ही बड़े कारणों से जानी जाती है। पहला कारण है देश आर्थिक रूप से कितनी प्रगति कर रहा है और दूसरा उसका पर्यावरण समृद्ध है अथवा नहीं अर्थात् उसकी पारिस्थितिकी से। भले ही हम इस बात का गर्व करें कि मनुष्य की प्रजाति सर्वश्रेष्ठ है, वह किसी पर निर्भर नहीं करती, किन्तु यह भी सत्य है कि ऐसे बहुत से कारण हैं जिनके लिये हम प्रकृति पर निर्भर हैं। छोटे-छोटे बैक्टिरिया से लेकर विशालकाय जीव-जन्तु और वनस्पति मानव जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ हमारे सतत् विकास के भागीदार हैं। हम सब पर्यावरण दिवस के मायने सही रूप में समझेंगे और पृथ्वी को बचा पाने में सफल होंगे। क्योंकि हमारे समाधान प्रकृति में ही है। अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए आइये हम सब आगे आए।
यदि इतिहास के पन्ने पलटें तो लगभग पांच सौ करोड़ साल पहले एक महाप्रलय आया था, जिसमें 95 प्रतिशत प्रजातियाॅ समाप्त हो गयी थी। शेष बची प्रजातियों ने फिर से नयी दुनिया बसायी। यह सब कुछ परिस्थिति और प्रकृति के अनुसार ही हुआ। लेकिन आज जो हो रहा है या होने वाला है क्या वह भी प्राकृतिक होगा? आज हम जिस ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारणों को प्राकृतिक बता कर पल्ला झाड़ रहे हैं, वह इतनी तेज गति से हो रहा है कि वह अप्रत्याशित प्रतीत होता है। प्राकृतिक संतुलन तो न जाने कब का छिन्न-भिन्न हो चुका है। अनियंत्रित और अनियमित औद्योगिकरण से हो रहे उत्सर्जन और निस्तारण ने न तो हवा को ही शुद्ध रहने दिया और ना ही जल स्त्रोतों और मृदा को। दरअसल हमने संपूर्ण विकास के लिये औद्योगिकरण के माध्यम से होने वाले आर्थिक विकास को ही विकास की कुंजी समझ कर केवल अपना विकास करने का ही लक्ष्य रखा है। हम भूल गये हैं कि विकास किसी एक पीढ़ी का नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी होना है और इसके लिये हमें तात्कालीन विकास नहीं बल्कि चिरस्थाई विकास चाहिए।
पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित
खेती, औद्योगिकरण या वन संपदा के दोहन या अन्य किसी भी कारण से वनों की एक तरफा कटाई का परिणाम है कि विगत कुछ वर्षों में तेजी से वनों का खात्मा होता रहा है और आज भी वनों के विनाश का यह सिलसिला अनवरत जारी है। साल दर साल इतने ज्यादा वनों के काटे जाने के कारण वन तो कम हो ही रहे हैं, प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति भी उत्पन्न हो रही है। इसके साथ ही जैव- विविधता को भी बहुत अधिक क्षति पहंच रही है, पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह से असंतुलित हो चुका है.
प्रजातियां खत्म होने की कगार पर
हमारे इस असंवेदनशील व्यवहार से धरती को बहुत कष्ट उठाना पड़ रहा है, उसके प्राकृतिक अवयव धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। असंख्य वनस्पति प्रजातियां या तो विलुप्त हो चुकी हैं या खत्म होने की कगार पर है। यह कहने की आवष्यकता नहीं है कि हम भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति का जो स्वरूप छोड़ रहे हैं वह निष्चत ही अस्वीकार्य है। जलवायु परिवर्तन आज हमारे समक्ष एक ज्वलंत मुद्दा है। तेजी से होते औद्योगिकरण, शहरीकरण के फलस्वरूप मानवीय गतिविधियों में वृद्धि होने के कारण उत्पन्न होने वाली ग्रीन हाउस गैसें जिनमें कार्बन-डाइआॅक्साइड और मीथेन गैस प्रमुख है, ग्लोबल वार्मिंग का सबसे प्रमुख कारण है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न जलवायु परिवर्तन विश्व के समक्ष एक चुनैती बन चुका है।
भूमिगत जल स्त्रोतों में गर्मी से पानी की कमी
इंटरनेशनल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी के द्वारा किए गए अध्ययन से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के अब तक जो अनुमान लगाए गए थे, वे सच होने लगे है। ध्रुवों के बर्फ और ग्लेषयर निरंतर पिघल रहे हैं और समुद्र सतह का स्तर बढ़ने लगा है। आने वाली कुछ ही वर्षों में समुद्र सतह 1 से 8 फीट तक बढ़ जाएगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। गर्म हवाओं के चलने से वातावरण में आ रही गर्मी का प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। तापमान के बढ़ने से वातावरण में ओजोन की सांद्रता बढ़ रही है जिसके कारण फेफड़ों पर विपरीत असर पड़ रहा है। मिट्टी में नमी कम होने से तेजी से मरूस्थल बढ़ते जा रहे हैं। बहुत तेज गर्म हवाओं से जंगल में आग लगना और तूफानों की तीव्रता का बढ़ना संभव है। जलवायु परिवर्तन से फसलों का कुल उत्पादन कम हुआ है। सतह और भूमिगत जल स्त्रोतों में गर्मी के कारण पानी की कमी हो रही है।
पृथ्वी अनमोल है, संतुलन बनाए
इस वर्ष यूनाइटेड नेषन इनवायरमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत पर्यावरण दिवस की थीम ‘‘पृथ्वी अनमोल है’’ ‘‘पृथ्वी संग संतुलन बनाए’’ पर केंद्रीत है। पृथ्वी हमें बहुत कुछ देती है। खाने के रूप में अनाज, फल, सब्जियां। जमीन के नीचे कोयला, गैस, तेल जैसे ऊर्जा के संसाधन हैं, जिन्हें निकाल कर हम ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं आज भी कई शहर और गांवों में पीने का पानी धरती के नीचे से ही निकाला जाता है। लेकिन हर संसाधन की एक सीमित मात्रा होती है। इसलिए उसका इस्तेमाल हमें समझदारी से करना चाहिए। जिससे वह ज्यादा दिन तक चले और ज्यादा लोगों के काम आ सके, क्योंकि लगातार बढ़ती इंसानी आबादी के कारण एक ना एक दिन ये संसाधन खत्म हो जाएंगे।

HNS24 NEWS

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