November 22, 2024
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छत्तीसगढ़ : कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में  इस पर तत्कालीन भाजपा सरकार ने तब हमला किया जब उसने तमाम धार्मिक ,पौराणिक मान्यताओं को दरकिनार करते हुए इसे कथित राजिम कुंभ में परिवर्तित कर दिया था।

नाम परिवर्तन की गैर जरूरी राजनीति कर जनता के असली सवालों से ध्यान भटकाने का काम भाजपा ने पहली बार नहीं किया है। भारतीय जनता पार्टी का इतिहास इसी बात से भरा है।

भाजपा ने लोकसंस्कृति को नष्ट कर कृत्रिम सांस्कृतिक पहचान खड़ा करने का काम किया था और यह दरअसल छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर हमला था। हमारे मेले, मड़ई ,लोकोत्सव,लोक शिल्प ही तो हमारी सांस्कृतिक पहचान है। कुम्भ तो इस भारत देश का और हिंदुओं की आस्था का महापर्व है। महज भावनाओं की और धर्म की राजनीति करने में माहिर भाजपा ने इस नाम का इस्तेमाल कर छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति की पहचान को मिटाने की कोशिश की थी।

केवल इतना ही नहीं इस कथित कुम्भ मेले के नाम पर तत्कालीन भाजपा सरकार हर साल करोड़ों रुपयों का अनुत्पादक व्यय करती रही है और जनता के धन को उस पवित्र नदी की रेत में बहाती रही है।

अब कांग्रेस की सरकार ने इस लोकोत्सव को उसकी गरिमा ही नहीं लौटाई है बल्कि मेला-मड़ई की छत्तीसगढ़ की हजारों सालो से चली आ रही समृद्ध गौरवशाली परंपरा को सहेजने का भी महत्वपूर्ण काम किया है । इस बात के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और गृह,लोकनिर्माण एवं कला संस्कृति मंत्री श्री ताम्रध्वज साहू का हम आभार व्यक्त करते है, जिन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता की भावनाओं के अनुरूप यह फैसला किया।

साहित्यकारों, कलाकारों और संस्कृति से जुड़े लोगो ने भी कांग्रेस सरकार के इस निर्णय का व्यापक स्वागत किया है।
सीबीआई

भारत में संविधान का संघीय ढांचा है। इसका अनुरूप केंद्र सरकार और राज्य सरकार से अधिकार स्पष्ट किये गये है।

सीबीआई केंद्र सरकार की एजेन्सी है जिसे किसी भी राज्य में जांच करने के पहले राज्य सरकार की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक एवं संविधान के अनुसार बंधनकारी है।

भाजपा की सरकार ने सीबीआई को छत्तीसगढ़ में किसी भी जांच के पहले अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता से मुक्त कर दिया था। केंद्र सरकार की एजेन्सी को भी छत्तीसगढ़ में किसी भी जांच के पहले अनुमति प्राप्त करने को बाध्यता को शिथिल कर दिया था।

कांग्रेस सरकार के राज्य सरकार की अनुमति की इसी जरूरत को फिर से आवश्यक किया है जो संविधान के संघीय ढ़ांचे के अनरूप है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संविधान प्रदत्त अधिकारो का प्रयोग किया है, यह उचित है। कानूनी है।

सीबीआई को राज्य में जांच करनी है तो वह राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त कर ले यही तो संवैधानिक प्रावधान है।

सीबीआई की स्वायतता के साथ कौन खिलवाड़ कर रहा है। इसे पूरा देश देख भी रहा है और समझ भी रही हैं।

सुपर सीएम का सुपर घोटाला हुआ उजागर
इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्यगिकी विभाग (डीअर्आईटी), छत्तीसगढ़ शासन ने सभी सरकारी क्रय में पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिये एक एकीकृत ई-प्रोक्योरमेंट प्रणाली स्थापित करने का निर्णय लिया। हांलाकि, प्रणाली को आठ मॉड्यूल की बनाई गई योजना के विरूद्ध केवल चार परिचालन मॉड्यूल (विक्रता प्रबंधन, ई-निविदा, ई-भुगतान और एमआईएस) के साथ 1 अप्रैल 2016 को गो-लाइव घोषित किया गया था तथा 35 ईकाइयों/विभागों में लागू किया गया। यद्यपि, इन विभागों से उपयोगकर्ता स्वीकृति परीक्षण (यूएटी) की रिपोर्ट गो-लाइव के लिये पूर्व-अपेक्षित थी, मात्र 22 इकाइयों ने चार मॉड्यल के लिये यूएटी दिया था, जबकि 13 इकाइयों ने सॉफ्टवेयर के कस्टमाईजेशन के अभाव में किसी भी मॉड्यूल के लिये यूएटी नहीं दिया था। एकीकृत मॉड्यूलों के कार्य नही करने के कारण निविदा के बाद निर्माण कार्यो को प्रदान करना, माप का रिकार्ड, प्रगति प्रतिवेदन तैयार करने आदि जैसे कार्यो को मैन्यूअल रूप से किया गया था, जबकि ठेकेदारो/आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान किसी अन्य प्रणाली (ई-वर्क्स5पोर्टल) के माध्यम से किया गया था जो ई-प्रोक्योरमेंट प्रणाली की प्रभावशाली को सीमित करता है। प्रणाली पारदर्शी नहीं थी और इसमें नियंत्रण विफलताएं थी। यह रू. 4601 करोड़ के 1921 निविदाओं के संदर्भ में निविदाकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों द्वारा 74 एक समान कम्प्यूटरों के उपयोग को ज्ञात कर एवं रोक नहीं सका, 79 ठेकेदारों/विक्रेताओं द्वारा पैन के दो सेटों का उपयोग, रू 225.14 करोड़ की कीमत वाले 133 निविदाओं में विभिन्न निविदाकर्ताओं द्वारा एक समान ई-मेल आईडी का उपयोग रू. 23.77 करोड़ के 11 निर्माण कार्यो को ठेकेदार की बोली क्षमता को नजरंदाज करके सौपा जाना, यह अनुचित निविदा प्रक्रिया के प्रति एक चेतावनी है और सतर्कता दृष्टिकोण से इसकी जांच तथा निविदा समिति के सदस्यों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही अपेक्षित है।
लोकहितार्थ सत्य निष्ठा के ध्येयवाक्य के अनुरूप सीएजी ने जो उजागर किया है उसे छत्तीसगढ़ की वास्तविक स्थिति उजागर हो गयी है। छत्तीसगढ़ के 23 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में से 13 के लेखा 2012-13 से बकाया थे। कांग्रेस का स्पष्ट आरोप है कि तथ्यों के गलत प्रस्तुतिकरण गबन और दुरूपयोग के लिये इन लेखों को बकाया रखा गया।
20 पीएसयू में से ऋण लागत 8.17 प्रतिशत और निवेश की लागत 3.52 प्रतिशत होना भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली को उजागर करता है। जनता के धन के दुरूपयोग का गंभीर मामला 325.21 करोड़ की सांकेतिक हानी से स्पष्ट है। तीन के लेखा तो अभी फाइनल हुये ही नही है। राज्य के पीएसयू में न लाभांश हैं न लाभांश नीति है।

1 छत्तीसगढ़ में 23 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज) में से, 20 कार्यशील तथा चीन अकार्यशील है। इन 23 पीएसयूज में से 13 के लेखे 2012-13 की अवधि तक से बकाया थे। कंपनी अधिनियम के उल्लंघन के अतिरिक्त, लेखों को बनाने में विलंब/न बनाने के कारण तथ्यों के गलत प्रस्तुतिकरण, गबन व दुरूपयोग की संभावना का भय बना रहता है।
2 विगत तीन वर्षों में लेखे अंतिमीकृत करने वाले 20 पीएसयूज ने 8.17 प्रतिशत की औसत ऋण की लागत के विरूद्ध औसत 3.52 प्रतिशत निवेश पर प्रतिफल (आरओआई) अर्जित किया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को विगत तीन वर्षो में ही 324.21 करोड़ रू. की सांकेतिक हानि हुई। बाकी तीन पीएसयूज जिनके लेखें अंतिमीकृत होने शेष है, कि हानि का आकलन नहीं किया जा सकता।
3 वर्ष 2016-17 के दौरान, राज्य सरकार ने दो कार्यशील पीएसयूज को 156.46 करोड़ की बजटीय सहायता दी, बावजूद इस तथ्य के कि इन पीएसयूज ने विगत चार से पांच वर्षो से अपने लेखें अंतिमीकृत नहीं किये है। अतः यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य सरकार ने इन पीएसयूज को किस आधार पर बजटीय सहायता दी।
4 राज्य सरकार ने राज्य के पीएसयूज के लिये कोई भी लाभांश नीति नहीं बनाई है। फलस्वरूप, यद्यपि नौ पीएसयूज ने, अद्यतन अंतिमीकृत लेखों के अनुसार 6146.97 करोड़ की सरकारी इक्विटी के साथ समग्र रूप से 74.43 करोड़ रू. का लाभ अर्जित किया, परंतु मात्र एक पीएसयूज छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम लिमिटेड ने ही 0.87 करोड़ रू. का लाभांश प्रस्तावित किया।
5 वर्ष के दौरान, सांविधिक अंकेक्षकों ने 16 कार्यशील कंपनियों के अंतिमीकृत 20 लेखों के लिये दोषयुक्त प्रमाणपत्र दिये। कंपनियों द्वारा लेखा मानको का अनुपालन खराब रहा क्योंकि, उक्त के संबंध में आठ कंपनियों के नौ लेखों में गैर-अनुपालन के 15 मामले पाये गये।
6 पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश राज्य के पुनर्गठन के 17 वर्षो के बाद भी, राज्य सरकार छः पीएसयूज, जिनमें 36.98 करोड़ रू. की अंशपूंजी एवं ऋण था, कि संपत्तियों एवं दायित्वों का विभाजन उत्तरवर्ती छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश राज्य के मध्य पूर्ण नहीं कर पायी।
7 छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड उज्जवल डिस्कॉम आश्वासन योजना (उदय) के अंतर्गत परिचालन निष्पादन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकी।
8 छत्तीसगढ़ राज्य बीज एव कृषि विकास लिमिटेड द्वारा दर अनुबंधों के अंतिमीकरण एवं सामग्रियों के क्रय पर निष्पादन लेखा परीक्षा की गयी जिसमें कंपनी द्वारा किये गये 70 दर अनुबंधों एवं 1369.26 करोड़ मूल्य की सामग्री के क्रय को शामिल किया गया। कंपनी में मानव संसाधन की कमी जो कि 42 प्रतिशत से 53 प्रतिशत तक थी, ने कंपनी के निष्पादन को विपरीत रूप से प्रभावित किया। कंपनी में प्रभावशील आंतरिक नियंत्रण तथा निगरानी तंत्र की कमी के कारण वित्तीय प्रबंधन दर अनुबंधों के अंतिमीकरण तथा सामग्रियों के क्रय में कमियां पाई गई।
9 छत्तीसगढ़ पुलिस हाऊसिंग कॉपोरेशन लिमिटेड की निर्माण गतिविधियों की लेखा परीक्षा में 178.85 करोड़ मूल्य के 86 ठेका कार्य शामिल किये गये। कंपनी में मानव संसाधन की कमी और प्रभावशील आंतरिक नियंत्रण तथा निगरानी तंत्र की कमी के कारण कार्य के अवार्ड तथा क्रियान्वयन में कमियां एवं पूर्ण होने में विलंब पाया गया।
10 लेखा परीक्षा में पाया गया कि, अपने मार्जिन में से अतिरिक्त आबकारी शुल्क के भुगतान के कारण 8.53 करोड़ की हानि, आयकर अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन न होने के कारण 1.17 करोड़ के दाण्डिक ब्याज का परिहार्य भुगतान तथा ऑटो स्वीप सुविधा न लेने के कारण 1.90 करोड़ के ब्याज की हानि हुई।

HNS24 NEWS

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