चित्रा पटेल : बीजापुर : राज्य सरकार की महत्वपूर्ण सुराजी गांव योजना के तहत गावों में गौठानों की पुरानी परम्पराओं को फिर से कायम करने के उददेश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में गोठानों की शुरूआत की गई है।लेकिन बीजापुर जिले के उसूर ब्लाक में मुरदण्डा के पास जनपद के अधिकारियों ने जंगल मे एक ईंट – सीमेंट से निर्मित गेट बनाकर चारो तरफ से खुल्ला छोड़ दिया है , गोठान को चारों तरफ से दीवार या तारबन्दी से बंद नही किया गया इस गोठान में सामने का गेट तो महज औपचारिक्ता है मवेशी चारो तरफ से कंही भी इस गोठान में आ सकते है , गोठान में बोर तो खोद दिया लेकिन बन्द पड़ा है साथ ही चारे की कोई व्यवस्था नही वन्ही किसी कर्मचारी व चरवाहे की वँहा नियुक्ति नही की गई , साफ तौर पर ये नजर आ रहा है कि अभी गोठान अधूरा है लेकिन वँहा गोठान के पूर्ण निर्माण का बोर्ड लगा दिया गया है और इस बोर्ड में लागत की जानकारी भी नही लिखी गई है।
इस बारे में उसूर जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी बंजारे से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वो गोठान पूर्ण हो गई है और ग्राम पंचायत के माध्यम से स्वसहायता समूह उसका संचालन कर रही है , गायो के गोठान में लाने के बारे में पूछने पर अधिकारी ने बताया कि कुछ गायो ओर मवेशियों को एक घण्टे के लिए लाकर आराम कराया जाता है , अधिकारी ने माना कि अभी गोठान में चारे एंव पानी सहित स्वास्थ्य की व्यवस्था नही है सिर्फ मवेशियों को औपचारिकता निभाने के लिए लाया जाता है
जब पत्रकारों ने गोठान के पास ही खड़े ग्रामीण सुखराम एंव संतोष से पूछा तो उन्होंने बताया कि ये गोठान चारो तरफ से खुला है कंही से भी मवेशी आ सकते है ,पानी और चारे की कोई व्यवस्था नही है ये निर्माण महज गोठान के नाम पर खानापूर्ति की गई है साथ ही यंहा मवेशी नही आते है जंगल मे ही चरते है एंव जनपद के लोगो द्वारा कुछ दिन पहले इस अधूरे गोठान में जबरन एक बार मवेशियों को लाया गया और फोटो खींच कर वापस भगा दिया गया ताकि उस फोटो का इस्तेमाल कार्यालय के कागजो में किया जा सके।
इससे साफ जाहिर है की जनपद के अधिकारी ने प्रदेश सरकार की 【गरुआ 】गोठान योजना का मजाक उड़ाते हुए अधूरे गोठान को पूरा बताया
जब पूरे प्रदेश में इस योजना की चर्चा हो रही हो और दूसरे प्रदेश से लोग जिस योजना को देखने और समझने आ रहें हों वो उस योजना को अधिकारी ने औपचारिकता में पूर्ण किया ,खैर ये जो भी हो रहा है उसके अंदर जाकर मूल परेशानी को समझें तो पाएंगे कि नंबर बढ़ाने की गरज से आधी अधूरी तैयारियों के साथ योजना प्रारम्भ क़र दी जाती है मगर फोटो सेशन के बाद योजना जमीन पर दम तोड़ती नजर आती है,वजह है गैर जिम्मेदार प्रशासन,ये किसी एक योजना का नहीं वरन भारत की केंद्र अथवा राज्य सरकारों की ज्यादातर योजनाओं का हश्र यही होता है।प्रधानमंत्री ने स्वच्छता अभियान क्या चलाया ? स्वच्छता योजना सेल्फी मोड में आ गयी ,,,,,ओ डी एफ का हश्र भी कुछ इसी तरह ही हुआ ,अब छत्तीसगढ़ के सरकार की ब्रांड योजना नरवा गरुआ घुरुआ बारी भी इसी राह पर चलती नजर आ रही है