बस्तर शांति समिति पहुंचे रायपुर, उन्होंने बस्तर की असली पीड़ा बताई
HNS24 NEWS September 25, 2024 0 COMMENTSरायपुर : 25 सितंबर, बस्तर शांति समिति के बैनर तले छत्तीसगढ़ से निकल कर दिल्ली की यात्रा पर गए 50 से अधिक नक्सल पीड़ित बस्तरवासी अब रायपुर लौट चुके हैं। उनकी चेहरा बस्तर के दर्द बयां कर रही थी। दिल्ली में हम पीड़ितों ने राष्ट्रपति से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री तक को अपनी पीड़ा सुनाई और बस्तर की वास्तविक स्थिति से उन्हें अवगत कराया। इसके अलावा पीड़ित बस्तरवासी जेनएयू और दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैम्पस भी पहुँचे, जहां हमने वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों से संवाद किया और नक्सलियों के साथ-साथ उनके शहरी समर्थकों को भी ललकारा।
दिल्ली से रायपुर लौटे पीड़ितों को आज राजधानी के प्रेस क्लब में ‘रुबरु’ कार्यक्रम के लिए प्रेस क्लब टीम व उनके अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने आमंत्रित किया था, जिस दौरान पीड़ितों ने अपनी दिल्ली यात्रा के बारे में पत्रकारों को विस्तृत जानकारी दी। पीड़ितों ने बताया कि दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने सबसे पहले 19 सितंबर को जंतर-मंतर में मौन विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान पीड़ितों ने बस्तर में शांति स्थापित करने की मांग की और नक्सलियों के समर्थकों से पूछा कि हमारे अधिकार के लिए आप कुछ क्यों नहीं बोलते हैं ? प्रेस वार्ता में पीड़ितों ने बताया कि जंतर-मंतर से निकलने के पश्चात उनके पूरे प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की, उनके साथ एक टेबल में बैठकर नाश्ता किया और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। केंद्रीय गृह मंत्री जी ने लगभग 1 घंटे तक सभी पीड़ितों की व्यथा व्यक्तिगत स्तर पर सुनी। केंद्रीय गृहमंत्री ने बस्तरवासियों की पीड़ा सुनने के बाद यह आश्वासन दिया कि गृहमंत्रालय ना सिर्फ उनकी चिंता कर रहा है, बल्कि मोदी सरकार जल्द से जल्द बस्तर को माओवादी आतंक से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध भी है। इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री को बस्तर शांति समिति की ओर से बस्तर में शांति स्थापित करने की मांग हेतु एक ज्ञापन भी सौंपा गया।
प्रेस क्लब में वार्ता के दौरान बस्तर शांति समिति ने बताया कि 20 सितंबर को पीड़ितों का दल कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में दिल्ली के पत्रकारों के समक्ष पहुँचा, जहां प्रेस वार्ता की गई। इस दौरान पत्रकारों को नक्सल पीड़ितों पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई और पीड़ितों ने अपनी कहानी भी सुनाई। चूंकि छत्तीसगढ़ में माओवादी आतंक का पूरा कंट्रोल आंध्र के माओवादियों के हाथ में है, इसीलिए कॉन्स्टिट्यूशन क्लब से निकलकर पीड़ितों ने प्रतीकात्मक रूप से आंध्रा भवन का रुख किया और वहीं भोजन कर यह संदेश दिया कि अब छत्तीसगढ़ को उनसे भय नहीं लगता है।
बस्तर शांति समिति के सदस्यों ने बताया कि हमने सुना है कि माओवादियों की हिंसा की घटनाओं के बाद जेनएयू जैसे विश्वविद्यालय में इस पर चर्चाएं होती हैं, यहां माओवादियों के शहरी पैरोकार बैठे होते हैं, इसीलिए हम पीड़ितों ने जेनएयू जाने का भी निर्णय लिया। जेनएयू में हम 20 सितंबर की शाम को पहुँचे और वहां के विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच अपनी कहानी सुनाई, बस्तर की असली पीड़ा बताई। जेनएयू में विद्यार्थियों ने पीड़ितों के साथ मिलकर ‘नक्सलवाद की कब्र खुदेगी, जेनएयू की धरती पर’ “न माओवाद, न नक्सलवाद, सबसे बड़ा राष्ट्रवाद” जैसे जोशीले नारे भी लगाए।
प्रेस वार्ता में मौजूद बस्तर शांति समिति के अन्य सदस्य जयराम दास ने बताया कि 21 सितंबर को पीड़ितों का प्रतिनिधिमंडल बस्तर की पीड़ा की जानकारी देने एवं अपनी वस्तुस्थिति बताने राष्ट्रपति भवन पहुँचा। यहां पीड़ितों ने राष्ट्रपति से भेंट की और उन्हें माओवादियों की क्रूरता एवं बस्तर में चल रही हिंसा से अवगत कराया। समिति ने बताया कि हमने ने राष्ट्रपति को भी ज्ञापन सौंपा, जिसके बाद राष्ट्रपति ने पीड़ितों को समाधान का आश्वासन दिया। उन्होंने यह भी कहा कि माओवादियों को हिंसा का त्याग कर मुख्यधारा में शामिल होना चाहिए।
दिल्ली से लौटे नक्सल पीड़ित बस्तरवासियों ने बताया कि उन्होंने दिल्ली में नवनिर्मित कर्तव्य पथ का भी दौरा किया, कर्तव्य पथ पर चलते हुए माओवादियों को आह्वान किया कि वो भी लोकतंत्र के मार्ग पर चले, ताकि बस्तर में शांति आ सके। पीड़ितों ने बताया कि 21 सितंबर को ही हम दिल्ली यूनिवर्सिटी भी गए और वहां हमने मीडिया से चर्चा की, साथ ही अर्बन नक्सलियों को भी ललकारा और उन्हें कहा कि नक्सलवाद तो जल्द ही खत्म हो जाएगा, लेकिन अर्बन नक्सली यदि नहीं सुधरे, तो उनका वास्तविक चेहरा पूरा देश देखेगा।
पीड़ितों ने रायपुर प्रेस क्लब में राजधानी के पत्रकारों से विस्तृत चर्चा की और कहा कि अब हम दिल्ली में अपनी बात रखकर आये हैं, तो हमें विश्वास है कि हमारी समस्या का समाधान जल्द ही निकलेगा और बस्तर में पुनः शांति स्थापित होगी तथा हम स्वच्छन्दता से अपना जीवन जी सकेंगे।