November 22, 2024
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रायपुर। दिनांक10/11/22, पूर्व मंत्री एवं भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं में शुमार केदार कश्यप ने धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों को आरक्षण का लाभ दिए जाने को लेकर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि देश की 700 से अधिक जनजाति के विकास और उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण और अन्य सुविधाओं का प्रावधान संविधान में किया है। लेकिन उन सुविधाओं का लाभ उन जनजातियों के स्थान पर वे लोग उठा रहे है। जो अपनी जनजाति संस्कृति, रूढ़िवादी परंपरा छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए है।

उन्होंने अंबिकापुर में बीते 8 नवंबर को ईसाई आदिवासी महासभा द्वारा प्रस्तावित उरांव नृत्य महोत्सव का सर्व आदिवासी समाज, उरांव समाज और जनजाति गौरव समाज के द्वारा विरोध किए जाने पर कहा कि जिन लोगों ने धर्मांतरण कर ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है उन्हें अब करमा की याद कैसे आ रही है, ईसाई बनकर उन्होंने अपनी जनजाति परंपरा संस्कृति को अपनी स्वयं की इच्छा से छोड़ा है। उन्हें अपने ईसाई धर्म में मनाए जाने वाले उत्सव को मनाना चाहिए लेकिन हमारी संस्कृति में अतिक्रमण करने के उद्देश्य से इस प्रकार का आयोजन किया जा रहा है।

केदार कश्यप ने इसे कांग्रेस एवं भूपेश सरकार की साजिश करार देते हुए बड़ा आरोप लगाते हुए 4 साल की बड़ी नाकामियों में धर्मांतरण के मुद्दे को शामिल किया है। उन्होंने कहा कि आदिवासी संस्कृति और परंपरा को ईसाई मिशनरियों द्वारा हथियाने और आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण में बेतहाशा वृद्धि कांग्रेस की सोची समझी साजिश है। छत्तीसगढ़ में भोले-भाले आदिवासियों और आदिवासी समुदाय की संस्कृति, संस्कार को नष्ट करने की साजिश कांग्रेस की सरकार के संरक्षण में चार साल से चल रही है।

उन्होंने अपने मूल संस्कृति को भूल कर ईसाई धर्म में धर्मांतरण कर आदिवासी होने का आडंबर करने वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि कोई भी आदिवासी व्यक्ति विधिवत रूप से मत परिवर्तन कर ईसाई धर्म को स्वीकार करता है उस दिन से मूल रूढ़ी प्रथा, संस्कृति को त्यागकर ही ईसाई धर्म अपनाता हैं। ऐसे लोगों को मूल आदिवासी समाज काफी समय से असूचीबद्ध/डिलिस्टिंग किए जाने की मांग कर रहा है।

उन्होंने कहा कि यह लोग उरांव नृत्य महोत्सव आयोजित कर सरकार के सामने और विश्व पटल पर यह दर्शाना चाह रहे है कि वे भी मतांतरित आदिवासी रूढ़ीजन्य परंपरा को आज भी मानते हैं ताकि उसे अनुसूचित जनजाति सूची से बाहर न होना पड़े, और डीलिस्टिंग की प्रक्रिया से बच जाएं। गौरतलब है कि इस दौरान बड़ी संख्या में धर्मांतरण के बाद ईसाई बने आदिवासियों के द्वारा विशाल करमा नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया था जिसके जरिए वह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराना चाहते थे। लेकिन मूल आदिवासियों के काफी विरोध के बाद इसे स्थगित किया गया।

आपको अनुसूचित जनजाति सूची से ईसाई आदिवासियों को बाहर कर आरक्षण नहीं दिए जाने को लेकर जो संग्राम छिड़ा हुआ है। उसे जानने से पहले डीलिस्टिंग के बारे में जानना जरूरी है। डी का अर्थ है डिलीट और लिस्टिंग का अर्थ है लिस्ट। यानी जनजाति समाज के ऐसे लोग जो धर्मांतरित हो चुके (धर्म बदलना) है। उन्हे जनजाति समाज की लिस्ट से डिलीट किया जाए और अनुसूचित जनजाति के नाम से जो आरक्षण का लाभ मिल रहा है उसे समाप्त किया जाए।

बता दें कि आदिवासी क्षेत्रों में जनजाति सुरक्षा मंच, सर्व आदिवासी समाज उरांव समाज एवं अन्य मूल आदिवासी लोग काफी समय से डीलिस्टिंग की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि धर्मांतरित होने के बाद अपनी परंपरा, रीति-रिवाज को छोड़ दिया और अलग रास्ते पर चल पड़े। ऐसे में उनको आरक्षण लेने का अधिकार नहीं है। और इसलिए पूरे देश में आंदोलन चल रहा है। उनका कहना है कि आरक्षण तथा अन्य सभी तरह के लाभ धर्मांतरित ईसाई, मिशनरियों को गलत ढंग से मिल रहा है। इस तरह वे मांग कर रहे है कि उनका आरक्षण समाप्त हो।

बता दे कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को अनुसूचित जातियों का दर्जा देने के साथ ही उन्हें आरक्षण और अन्य लाभ देने की मांग वाली याचिका पर जवाब देते हुए इसका कड़ा विरोध किया है। याचिका की मांग पर तर्क देते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा कि 1950 का संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश किसी भी असंवैधानिकता से ग्रस्त नहीं है।

लिखित जवाब में केंद्र ने कहा कि इस्लामी व ईसाई समाज के सदस्यों को कभी भी पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा। इसमें कहा गया है कि जिन कारणों से अनुसूचित जाति के लोग इस्लाम व ईसाई धर्म में धर्मांतरण कर रहे हैं उनमें से एक अस्पृश्यता की दमनकारी व्यवस्था से बाहर आना है, एक सामाजिक कलंक जो इनमें से किसी भी धर्म में प्रचलित नहीं है।

HNS24 NEWS

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