November 22, 2024
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रायपुर : छत्तीसगढ़ के चर्चित मदनवाड़ा कांड में न्‍यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सरकार ने बुधवार को विधानसभा में पेश की गई। मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल ने रिपोर्ट पर सरकार की तरफ से की गई कार्रवाई से सदन को अवगत कराया। आयोग की जांच रिपोर्ट में निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। आयोग रिपोर्ट के मुताबिक आईपीएस मुकेश गुप्ता ने घटना के दौरान अगर बुद्धिमता दिखाई होती तो शायद ही नतीजा कुछ और ही होता। इतना ही नहीं, आयोग ने जांच रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया है कि आईपीएस मुकेश गुप्ता ने नक्सलियों से मुकाबले के लिए एसपी विनोद चौबे को आगे भेज दिया और खुद अपनी बुलेटप्रूफ कार में बैठे रहे। जांच आयोग की रिपोर्ट में तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता को दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सली हमले के दौरान तत्कालीन दुर्ग आईजी मुकेश गुप्ता की लापरवाही एवं असावधानी दिखती है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद करीब दो वर्ष पहले इस मामले की न्‍यायिक जांच के आदेश दिए थे। जांच की जिम्‍मेदारी इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शंभूनाथ श्रीवास्तव को सौंपी गई थी। राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में यह घटना 12 जुलाई 2009 को हुई। तत्‍कालीन एसपी वीके चौबे सहित 29 जवान नक्‍सली मुठभेड़ में बलिदान हो गए थे। जांच आयोग ने पिछले महीने ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है। राजनांदगांव के नक्‍सल प्रभावित मदनवाड़ा स्थित पुलिस के कैंप के दो जवानों की नक्‍सलियों ने गोली मारकर हत्‍या कर दी थी। घटना के बाद तत्‍कालीन एसपी वीके चौबे फोर्स के साथ घटनास्‍थल के लिए रवाना हुए तो नक्‍सलियों ने घात लगाकर पूरी टीम पर हमला कर दिया। इस घटना को लेकर काफी विवाद हुआ। पुलिस के ही आला अफसरों पर आरोप लगे, लेकिन मामला शांत हो गया। 2018 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने इस मामले की न्‍यायिक जांच कराने का फैसला किया।
तत्कालीन आईजी को घटना के लिए ठहराया जिम्मेदार
मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ पर विशेष जांच आयोग की रिपोर्ट में तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है। यह माना गया कि गुप्ता ने लड़ाई के मैदान में अपनाई जाने वाली गाइडलाइन तथा नियमों के विरुद्ध काम किया। यही नहीं, शहीद एसपी वीके चौबे को बगैर किसी सुरक्षा कवच के उन्हें आगे बढ़ने का आदेश दिया। खुद एंटी लैंडमाइन व्हीकल में बंद रहे या अपनी खुद की कार में बैठे रहे।
सीआरपीएफ और एसटीएफ की लेनी चाहिए थी मदद
जांच रिपोर्ट में घटनास्थल पर मौजूद रहे पुलिसकर्मियों के बयानों का सूक्ष्मता से आकलन करते हुए उन्होंने पाया कि आईजी मुकेश गुप्ता को यह स्पष्ट रूप से पता था कि भारी संख्या में नक्सली अपनी पोजीशन ले चुके हैं। वे जंगल में छिपे हुए हैं। रोड के दोनों साइड से नक्सली फायर कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में फोर्स को पीछे से ताकत देने के बजाय उन्हें सीआरपीएफ और एसटीएफ की मदद लेनी चाहिए थी। ड्यूटी पर रहने वाले कमांडर तथा उच्चाधिकारी को यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि वे इस तरह की कार्रवाई न करें जो कि उनके मातहतों को खतरनाक परिस्थितियों में डाल दे।
बिना उचित प्रक्रिया के स्थापित किया गया था कैंप
रिपोर्ट में कहा गया है कि मदनवाड़ा में बिना उचित प्रक्रियाओं के, बगैर राज्य सरकार के अनुमोदन तथा एसआईबी की खुफिया रिपोर्टों के बावजूद पुलिस कैंप स्थापित किया गया। उस कैंप में कोई भी वॉच टावर नहीं था। वहां पर पुलिसवालों के रहने का प्रबंध और कोई व्यवस्था नहीं थी। सीएएफ कर्मचारियों के लिए कोई टॉयलेट भी नहीं था। गवाह के साक्ष्य में यह बात सामने आई कि इस कैंप का उद्घाटन भी बेतरतीब तरीके से आईजी जोन ने सिर्फ एक नारियल फोड़कर किया था।
घटनास्थल से दूर नाका बैरियर के पास मौजूद थे तत्कालीन आईजी
आयोग ने आईजी जोन मुकेश गुप्ता के घटनास्थल पर मौजूद रहने को संदेहास्पद माना। वहीं एसआई किरीतराम सिन्हा तथा एंटी लैंडमाइन व्हीकल के ड्राइवर केदारनाथ के हवाले से माना कि वे मुठभेड़ के दिन घटनास्थल से कुछ दूरी पर नाका बैरियर के पास मौजूद थे। अगर वे घटनास्थल पर आए भी होंगे तो काफी देर से आए होंगे, जब सीआरपीएफ वहां पहुंच चुकी थी। घटनास्थल पर बने रहने की कहानी तथा नक्सलियों पर फायरिंग करने की कहानी यह उन्होंने खुद के द्वारा रची। यहां यह भी नोट करना आवश्यक है कि पूरी कहानी बनाई गई थी। इसी कारण यह मामला कोर्ट में सभी को बरी करने के बाद खत्म हो गया था।
तत्कालीन एडीजी का जांच रिपोर्ट पर अहम बयान
जांच रिपोर्ट में तत्कालीन एडीजी नक्सल ऑपरेशन गिरधारी नायक के बयान का भी जिक्र है। इस बयान में गिरधारी नायक ने कहा है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने युद्ध क्षेत्र के नियमों का पालन नहीं किया। इसकी वजह से 25 पुलिसकर्मियों की घटनास्थल पर शहादत हो गई। नायक ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया है कि उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में आईजी मुकेश गुप्ता को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की अनुशंसा नहीं की थी। जबकि उन्होंने सलाह दी थी कि जब एक भी नक्सली नहीं मारा गया, एक भी शस्त्र ढूंढा नहीं गया तो ऐसे में पुलिसकर्मियों को पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए।

HNS24 NEWS

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