पंचायत के साथ मिलकर गांव में “वित्तीय समावेशन की मशाल” जला रही है गंगोत्री
HNS24 NEWS November 18, 2021 0 COMMENTSरायपुर. 18 नवम्बर 2021. घर की चारदीवारी और मजदूरी करने तक सीमित रहने वाली ग्रामीण महिलाएं आज मनरेगा में महिला मेट के रूप में काम कर बदलाव की कहानियां गढ़ रही हैं। हाथ में टेप लेकर गोदी की माप का लेखा-जोखा अपने रजिस्टर में दर्ज करने से लेकर मनरेगा कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और स्वरोजगार के माध्यम से उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की मुहिम की अगुवाई भी वे बखूबी कर रही हैं। मनरेगा और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए महिलाओं के आजीविका संवर्धन और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महिला मेट महत्वपूर्ण काम कर रही हैं। नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के कोंटा विकासखंड की दुब्बाटोटा ग्राम पंचायत की आदिवासी महिला मेट गंगोत्री पुनेम भी अपने गांव की महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में लगी हुई हैं। मनरेगा के साथ ही सरकार की दूसरी योजनाओं के माध्यम से वह महिलाओं की आमदनी बढ़ा रही है।
मनरेगा में मेट की अपनी जिम्मेदारियों को कुशलता से अंजाम देने के साथ ही 30 साल की गंगोत्री पंचायत के साथ मिलकर गांव में वित्तीय समावेशन को भी बढ़ा रही है। दुब्बाटोटा में मनरेगा मजदूरी का भुगतान पहले नगद होता था। गंगोत्री की कोशिशों से अब श्रमिकों के बैंक खातों में इसका भुगतान हो रहा है। गांव से छह किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक की दोरनापाल शाखा में पिछले साल तक 300 मनरेगा श्रमिकों का बचत खाता था। गंगोत्री ने इस वर्ष 66 और श्रमिकों का वहां खाता खुलवा दिया है। श्रमिकों की मजदूरी अब सीधे उनके खातों में आ रही है।
गांव में मनरेगा कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में गंगोत्री की बड़ी भूमिका है। उन्होंने गांव की चार अन्य महिला मेट के साथ घर-घर जाकर महिलाओं से बात की और उन्हें महिला मेट के सुपरविजन में काम करने के लिए प्रेरित किया। उन लोगों का यह प्रयास रंग लाया। उनकी लगातार कोशिशों से इस साल गांव की 480 महिला श्रमिकों को 23 हजार 272 मानव दिवस का रोजगार मिल चुका है। महिला मेट की उपस्थिति से आदिवासी क्षेत्रों की महिलाएं कार्यस्थल पर सहजता महसूस कर रही हैं। इससे मनरेगा कार्यों में महिला श्रमिकों की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है।
गंगोत्री एक साल पहले तक खेती में पति का हाथ बटाकर और मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थी। वह गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) के अंतर्गत गठित सीता स्वसहायता समूह से जुड़ी और आजीविकामूलक गतिविधियों में सक्रिय हुई। उन्होंने अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया। बारहवीं तक शिक्षित गंगोत्री शुरूआत से ही अपने समूह में ‘बुक-कीपर’ की जिम्मेदारी उठा रही है। उसका समूह मुर्गीपालन और अंडा उत्पादन के काम में लगा हुआ है। इससे हो रही आमदनी से समूह की महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं।
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