रायपुर : सवाल अब यह है कि आखिरकार नक्सलियों की बात मानने सरकार किस लिए मजबूर थी यह अब एक सवाल खड़ा हो रहा है।
तर्रेम हमले के बाद नक्सलियों के बंधक जवान राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई के बदले एक आदमी छोड़ा गया है। आखिरकार वह आदमी कौन था? वह सुक्का कुंजाम था या माड़वी सुक्काल। यदि वह नक्सली था तो उसे छोड़ा क्यों ? और ग्रामीण था तो उसे पकड़ा क्यों? क्या जवान की रिहाई के लिए कोई सीक्रेट डील हुई है तो इसके पीछे का सीक्रेट क्या है? यह सारे प्रश्र अब उठ रहे हैं।
इन सबके बावजूद जवान की रिहाई में मध्यस्थ दल की भूमिका की जितनी सराहना की जाए कम है। दल में पद्मश्री धर्मपाल सैनी, रिटायर्ड शिक्षक रुद्र करे, गोंडवाना समन्वय समिति के अध्यक्ष तेलम बौरैया, बीजापुर के मुरतंडा की सरपंच सुखमती हपका समेत दक्षिण बस्तर के पत्रकार गणेश मिश्रा, मुकेश चंद्राकर, रंजन दास, के. शंकर, चेतन कपेवार व रवि रुजे थे। इनके योगदान को कहीं पर भी कमतर नहीं आंका जाना चाहिए।
नक्सलियों के गढ़ में घुसकर जिस बहादुरी व कर्मठता के साथ उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई है उन पर गर्व होना चाहिए। मैदानी इलाके में बैठकर जंगल के अंदर के दिक्कतों को समझना आसान नहीं है। एक जवान की जान बचाने इन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की और 12 से अधिक गांव के ग्रामीणों की मौजूदगी में नक्सलियों के जनअदालत से जवान को सही सलामत ले आए। जवान के परिवार के साथ, बस्तर ही नहीं, छत्तीसगढ़ और यह देश उनके इस प्रयास के लिए उनका ऋणी रहेगा।
बदले में किसी को छोडऩे से इंकार, कहा कर रहे तस्दीक
इधर आईजी सुंदरराज पी ने किसी भी सौदेबाजी से इंकार किया है। उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, टेकलगुड़ेम में हुई मुठभेड़ के पश्चात घायल जवानों को कुछ ग्रामीण वापस कैम्प तक सुरक्षित लेकर आये थे। ग्रामीण सुखा कुंजाम जिसकी संबंध में मीडिया एवं सोशल मीडिया में जिक्र किया गया है। संभवत: उनमें से है, जो पुलिस के साथ कैम्प आकर वापस अपने गांव तक सही सलामत चले गए होंगे। इस संबंध में विस्तृत जानकारी की तस्दीक की जा रही है। टेकलगुड़ेम मुठभेड़ के प्रकरण में अब तक किसी की भी गिरफ्तारी नही की गई है। ना ही अपहृत जवान के बदले में किसी माओवादी को छोड़ा गया।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी के जारी बयान का वीडियो देखें:
5 दिन तक सुक्का की मेहमानवाजी किसलिए?
रिहा किए गए युवक के संबंध में आईजी सुंदरराज पी ने कहा, मुठभेड़ के बाद कुछ ग्रामीण घायल जवानों को सुरक्षित कैम्प तक लेकर आए थे। इसके बाद ग्रामीण वापस लौट गए। सुक्का कुंजाम भी उन्हीं में से एक रहा होगा। लेकिन तीन अप्रैल को तर्रेम के टेकलगुड़ेम, जोनागुड़ा मुठभेड़ के बाद उसी दिन 31 घायल जवानों को मुठभेड़ स्थल से निकाला जा चुका था।
चार अप्रैल को 22 शहीद जवानों के शव भी निकाल लिए गए थे। ऐसे में 3 से 8 अप्रैल तक 5 दिन तक तर्रेम थाना में एकमात्र ग्रामीण सुक्का कुंजाम की मेहमाननवाजी किसलिए की गई। 5 दिन की मेहमाननवाजी के बाद 8 अप्रैल को मध्यस्थ दल के साथ ही क्यों भेजा गया। इसके बाद तुमला में नक्सलियों की जनअदालत में क्यों ग्रामीणों के बीच इसे रिहा करना पड़ा यह सवाल है।
बोरैया कह रहे पकड़े गए ग्रामीण को जनअदालत में पेश किया
द फ्रंटियर ने मध्यस्थ दल में शामिल गोंडवाना समन्वय समिति के अध्यक्ष तेलम बौरैया से बात की। उन्होंने बताया एक युवक सुक्का कुंजाम को टेकुलगुड़ा से फोर्स ने महुआ बिनते हुए पकड़ा था। उससे मारपीट की गई। वहीं ग्रामीण मध्यस्थ दल को नक्सलियों की जनअदालत, तुमला तक ले गया। तर्रेम से वह मध्यस्थ दल का मार्गदर्शक बनकर गया। तुमला में उसे नक्सलियों की जनअदालत में दिखाया गया। दल ने नक्सलियों की इस शर्त को माना कि अब पुलिस किसी को बंधक नहीं बनाएगी। किसी को जेल नहीं ले जाएगी।
जवान के वॉयरल ऑडियो में एक नक्सली को पकडऩे की बात
इधर तर्रेम हमले के बाद कोबरा बटालियन के एक जवान का ऑडियो वायरल हो रहा है। एक न्यूज चैनल में इस संबंध में खबर भी आई है। हालांकि वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं हुई है। हम भी इस वॉयरल ऑडियो की पुष्टि नहीं कर रहे। फिर भी इसे सुना जाना चाहिए। इसमें जवान कह रहा है, कल हमने हिड़मा को बता दिया कि तूने गलत जगह पंगा ले लिया है। कि हमने नक्सलियों की कितनी बुरी कंडीशन कर रखी थी। कम से कम 40-45 नक्सली मारे गए। दो ट्रैक्टर भरकर डेड बॉडी गई है। आज जो टीमें गई थी उनसे पता किया। जो ये न्यूज में दिखा रहे 3 मरे 4 मरे गलत है।
आगे जवान कह रहा है कि मैंने एक जिंदा नक्सली को पकड़ा। उसे ढाल बना कर ले मैं अपने साथी जवान को निकाल लाया। नक्सली कुछ नहीं कर सके क्योंकि जिंदा नक्सली को मैंने पकड़ रखा था। यहां बता दें, तर्रेम हमले के बाद पुलिस ने भी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 15-16 नक्सलियों के मारे जाने की बात कही है और दो ट्रैक्टर में ले जाने का दावा किया था। अब सवाल यह है कि क्या जिसे छोड़ा गया था क्या यह वहीं था ? इसे छुड़ाने के लिए ही नक्सलियों ने जवान को बंधक रखा और सरकार पर दबाव बनाया था?
नक्सलियों की विज्ञप्ति में माड़वी सुक्काल का जिक्र
नक्सली संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी दण्डकारण्य के प्रवक्ता विकल्प के हवाले से जारी प्रेस नोट में भी एक ग्रामीण माड़वी सुक्काल को फोर्स द्वारा पकड़े जाने का जिक्र किया गया है। लिखा गया है कि जीरागुड़ेम गांव के एक ग्रामीण माड़वी सुक्काल को पुलिस ने पकड़ा। उसे मार दिया गया और झूठ बोला जा रहा है कि एक माओवादी मारा गया है। सवाल यह है कि कहीं, नक्सली जिसे माड़वी सुक्काल को मारने का दावा कर रहे हैं। वह मारा ही नहीं गया हो। आखिर में जिसे रिहा किया गया शायद यह वहीं हो। सवाल है, रिहा किया गया युवक माड़वी सुक्काल था या सुक्का कुंजाम ?
मध्यस्थ दल पर सस्पेंस क्यों, क्या पद्मश्री के चेहरे का हुआ इस्तेमाल?
नक्सलियों ने जवान की रिहाई के लिए सरकार से मध्यस्थ दल भेजने को कहा था। लेकिन जवान की रिहाई होने तक किसी भी मध्यस्थ दल के तय होने को लेकन शासन-प्रशासन से कोई सूचना नहीं दी गई। गोपनीयता को लेकर सुरक्षा का हवाला दिया जा रहा है पर जब नक्सली खुद मध्यस्थ दल भेजने को कह रहे थे तो फिर इसके औचित्य पर सवाल है।
मध्यस्थ दल में शामिल तेलम बोरैया कह रहे हैं कि पुलिस ने धर्मपाल सैनी व उनके एक सहयोगी का नाम दिया था पर नक्सलियों ने उनके नाम की जगह स्थानीय लोगों के नाम मांगे थे। ऐसे में 92 वर्षीय पद्मश्री धर्मपाल सैनी के नाम को आगे रखने की आखिरकार क्या जरूरत पड़ गई?
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