राफेल घोटाला भारत का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है, जो साफ तौर से भ्रष्टाचार का स्पष्ट मामला है,
HNS24 NEWS December 20, 2018 0 COMMENTSछत्तीसगढ़ : रायपुर 20 दिसम्बर को कांग्रेस राजीव भवन में पत्रकारों को संबोधित करते हुए एसआईसीसी प्रवक्ता अजय माकन ने कहा कि राफेल घोटाला भारत का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है, जो साफ तौर से भ्रष्टाचार का स्पष्ट मामला है। मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सामने असत्य कथन व झूठे बयान देकर संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया गया है। श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार के ‘झूठ के पुलिंदे’ का भंडाफोड़ कर दिया। राफेल घोटाला सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने, देशहित के साथ समझौता करने, देश की सुरक्षा को कमजोर करने, सरकारी कंपनी, ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल)’ की अनदेखी करने एवं ‘पूंजीपति मित्रों’ को फायदा पहुंचाने का दुखद एवं घिनौना वृत्तांत है। राफेल घोटाले में 7 महत्वपूर्ण तथ्य हैं
1. ‘राफेल’ का मूल्य – सरकारी खजाने को 41,205 करोड़ का नुकसान!
कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान 12 दिसंबर, 2012 को खुली अंतर्राष्ट्रीय बोली के अनुसार 126 राफेल लड़ाकू जहाजों में से प्रत्येक लड़ाकू जहाज का मूल्य 526.10 करोड़ रु. यानि 36 लड़ाकू जहाजों का मूल्य 18,940 करोड़ रु. था। मोदी सरकार ने 36 राफेल लड़ाकू जहाज 7.5 बिलियन यूरो (1670.70 करोड़ रु. प्रति लड़ाकू जहाज) यानि 36 जहाजों के लिए 60,145 करोड़ रु. में खरीदे। इस सौदे में सरकारी खजाने को 41,205 करोड़ रु. का चूना लगा।
2. 30,000 करोड़ रु. का ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ पीएसयू – हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के हाथों से लेकर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस कंपनी को दे दिया गया
A) 13.03.2014 को एचएएल एवं राफेल-डसॉल्ट एविएशन के बीच एक वर्कशेयर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए।
B) 25.03.2015 को डसॉल्ट की सीईओ बैंगलोर में एचएएल की फैक्ट्री में गए और एयरफोर्स चीफ के सामने एचएएल-डसॉल्ट के संबंधों के बारे में बात की।
C) 08.04.2015 को विदेश सचिव ने भी एचएएल-राफेल के समझौते को स्वीकार कर लिया।
D) रिलायंस डिफेंस लिमिटेड एवं रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को एचएएल के चालीस सालों के अनुभव के सामने लड़ाकू जहाज बनाने का शून्य अनुभव है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एचएएल से 30,000 करोड़ रु. का कॉन्ट्रैक्ट छीनकर पब्लिक सेक्टर की कंपनी से ज्यादा निजी कंपनी के हितों का ख्याल क्यों रखा?
रिलायंस कंपनी की वेबसाईट आरइन्फ्रा ने यह दावा भी किया है कि उन्हें ‘30,000 करोड़ रु. का ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट डसॉल्ट एविएशन से मिल गया है। इसके अलावा यह भी दावा किया है कि उन्हें अतिरिक्त 1 लाख करोड़ रु. का ‘लाईफ साइकल कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट’ भी मिल गया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पब्लिक सेक्टर की कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को दरकिनार कर 30,000 करोड़ रु. का डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट 12 दिन पुरानी कंपनी, यानि रिलायंस डिफेंस को दे दिया। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड (जिसे राफेल-डसॉल्ट एविएशन से 30,000 करोड़ रु. का कॉन्ट्रैक्ट मिला) का गठन 10.04.2015 को प्रधानमंत्री द्वारा फ्रांस में 36 राफेल लड़ाकू जहाजों को खरीदने की घोषणा करने से 12 दिन पहले 28.03.2015 को ही किया गया था।
3. ‘डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रोसीज़र’, ‘कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी’ एवं ‘डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल’ को उठाकर ताक पर रख दिया
प्रधानमंत्री मोदी ने 10 अप्रैल, 2015 को 36 लड़ाकू जहाजों को खरीदने की घोषणा के वक्त अनिवार्य ‘डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रोसीज़र’ (डीपीपी) को उठाकर ताक पर क्यों रख दिया? डीपीपी की शर्तों, यानि ‘कॉन्ट्रैक्ट नेगोसिएशन कमिटी’ (सीएनसी) एवं ‘प्राईस नेगोसिएशन कमिटी’ (पीएनसी) द्वारा ‘सही मूल्य पता’ करने की प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया गया?
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल’ (डीएसी) को दरकिनार क्यों कर दिया? 10.04.2015 को प्रधानमंत्री ने पेरिस में 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदे जाने की घोषणा की। लेकिन 36 राफेल जेट खरीदने के लिए ‘एक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी’ (जरूरत की स्वीकृति) डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल द्वारा एक महीने बाद 13.05.2015 को मिली। डीएसी का निर्णय प्रधानमंत्री को एक महीने पहले कैसे मालूम था?
प्रधानमंत्री ने 10 अप्रैल, 2015 को 36 लड़ाकू जहाज खरीदने की घोषणा के वक्त तक नियमानुसार ‘कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी’ की पूर्व अनुमति क्यों नहीं ली, जो डीपीपी के अनुसार अनिवार्य है? कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी ने एक साल चार महीने बाद, यानि 24.08.2016 को कार्य उपरांत अनुमति प्रदान की।
8 अप्रैल, 2015 को विदेश सचिव ने दो दिन बाद प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान राफेल जहाज खरीदने बारे किसी भी प्रस्ताव को खारिज कर दिया? क्या प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी देश को बताएंगे कि 8 अप्रैल, 2015 से 10 अप्रैल, 2015 के बीच 48 घंटों में ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने आनन-फानन में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने की घोषणा कर डाली?
4. देश की सुरक्षा से समझौता – लड़ाकू जहाजों की संख्या घटाई एवं ‘ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलॉजी’ की बलि दे डाली
भारतीय वायु सेना को कम से कम 126 ऑपरेशनल लड़ाकू जहाजों की जरूरत है। कांग्रेस की यूपीए सरकार द्वारा जारी ‘रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल’ (आरएफपी) का आधार यही है, जिसमें साफ कर दिया गया था कि एचएएल ‘ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलॉजी’ के साथ 108 लड़ाकू जहाजों का निर्माण करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय वायु सेवा के लिए खरीदे जाने वाले लड़ाकू जहाजों की संख्या 126 से घटाकर 36 क्यों कर दी? इस मामले में भारतीय वायुसेना का परामर्श क्यों नहीं लिया गया? प्रधानमंत्री ने भारत को किए जाने वाले ‘ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलॉजी’ की बलि क्यों दे डाली?
5. प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल का ‘बेंचमार्क मूल्य’ 5.2 बिलियन यूरो से बढ़ाकर 8.2 बिलियन यूरो क्यों कर दिया
श्री सुधांशु मोहंती, हेड ऑफ फाईनेंस, रक्षा मंत्रालय (मई, 2016 तक) ने सबकुछ साफ करते हुए राफेल लड़ाकू जहाजों के लिए ‘बेंचमार्क मूल्य’ 5.2 बिलियन यूरो (39,422 करोड़ रु.) से बढ़ाकर 8.2 बिलियन यूरो (62,166 करोड़ रु.) करने के लिए मोदी सरकार के भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया।
1) ‘नेगोशिएटिंग टीम’ का ‘बेंचमार्क मूल्य’ के निर्धारण पर गंभीर विवाद रहा, जिसके बाद यह मामला तत्कालीन रक्षामंत्री, श्री मनोहर पार्रिकर के पास भेज दिया गया।
2) तत्कालीन रक्षामंत्री, श्री मनोहर पार्रिकर तथा रक्षामंत्री की अध्यक्षता वाली ‘डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल’ (डीएसी) एवं सेना के तीनों चीफ 8.2 बिलियन यूरो (62,166 करोड़ रु.) के ‘बेंचमार्क मूल्य’ पर सहमत नहीं हुए। डीएसी ने प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली ‘कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी’ (सीसीएस) के पास यह मामला भेज दिया।
3) प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सीसीएस ने 5.2 बिलियन यूरो की जगह 8.2 बिलियन यूरो का काफी अधिक ‘बेंचमार्क मूल्य’ स्वीकार कर लिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने 8.2 बिलियन यूरो (62,166 करोड़ रु.) का इतना ज्यादा ‘बेंचमार्क मूल्य’ स्वीकार क्यों किया?
6. क्यों प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल सौदे में ‘सोवरेन गारंटीष् (Sovereign Guarantee) की शर्त हटा ली और देशहित के साथ समझौता किया?
i. 9.12.2015 को कानून मंत्रालय ने फ्रेंच सरकार द्वारा ‘नो बैंक गारंटी’/’सोवरेन गारंटी’ के मामले पर रोक लगा दी और कहा कि इस कॉन्ट्रैक्ट में राजकोष से बड़ी राशि एडवांस भुगतान के रूप में किसी भी वास्तविक डिलीवरी के बिना दी जा रही है।
ii. 7.03.2016 को तत्कालीन रक्षामंत्री, श्री मनोहर पार्रिकर ने ‘बैंक-फ्रेंच गवर्नमेंट गारंटी’ के बदले ‘लैटर ऑफ कम्फर्ट’ स्वीकार करने या इस बारे कोई राय देने से इंकार कर दिया।
iii. 18.08.2016 को रक्षा मंत्रालय की ‘एयर एक्विज़िशन विंग’ ने यह नोट जारी किया कि, “Bank Guarantees may be insisted from French side as required under our procedure and Indian side may bear the Bank Guarantee charges.”
iv. 23.08.2016 को कानून मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय को अवगत कराया कि ‘फ्रेंच गवर्नमेंट- सोवरेन गारंटी’ डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रोसीज़र (डीपीपी) की एक जरूरी शर्त है।
v. 24.08.2016 को, यानि इसके अगले ही दिन, सीसीएस में प्रधानमंत्री मोदी ने एक कच्ची रसीद, जिसको ‘लैटर ऑफ कम्फर्ट’ कहते हैं, स्वीकार कर लिया और ‘बैंक गारंटी/ फ्रेंच गवर्नमेंट्स सोवरेन गारंटी’ की शर्त हटा ली।
कानून मंत्रालय की अनुमति न होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रोसीज़र को ताक पर रखकर ‘बैंक गारंटी/ फ्रेंच गवर्नमेंट्स सोवरेन गारंटी’ की शर्त हटाकर देशहित के साथ समझौता क्यों किया?
7. राफेल घोटाले के “Money Trail” की जाँच किसने की, जिसके द्वारा डसॉल्ट एविएशन ने रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स लिमिटेड के 10 रु. के शेयर 11,000 प्रतिशत प्रीमियम पर 40 मिलियन यूरो (लगभग 284 करोड़ रु.) में खरीदे।
A) 10.04.2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने पेरिस, फ्रांस में 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने की घोषणा की।
B) 23.09.2016 को मोदी सरकार ने राफेल कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किया।
C) दिसंबर, 2016 में मीडिया में आया कि 62,000 करोड़ रु. की 15 प्रतिशत राशि मोदी सरकार द्वारा डसॉल्ट एविएशन को एडवांस के रूप में दी गई।
D) 2017 में डसॉल्ट एविएशन ने एक डिफंक्ट कंपनी के 24,84,000 शेयर (प्रत्येक की फेस वैल्यू 10 रु.) 11,000 प्रतिशत की प्रीमियम पर 40 मिलियन यूरो (प्रत्येक शेयर 1154 रु. में) में खरीदे, जबकि इस डिफंक्ट कंपनी के एस्सेट केवल 8 लाख रु. के थे।
क्या यह भ्रष्टाचार के पैसे की पहली किश्त थी? डसॉल्ट एविएशन ने 8 लाख के टर्नओवर वाली डिफंक्ट कंपनी के शेयर 11,000 प्रतिशत के प्रीमियम पर क्यों खरीदे? क्या इस मामले की जाँच नहीं होनी चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार द्वारा बोला गया झूठ
1. कांग्रेस पार्टी ने सदैव से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट राफेल सौदे में भ्रष्टाचार, जहाज की कीमत, उपकरण की विशिष्टता, पूंजीपति मित्रों को फायदा पहुंचाने के मामले में जाँच के लिए उपयुक्त फोरम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट सभी फाईल नोटिंग्स को मंगाकर जाँच नहीं कर सकता, प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों सहित सभी गवाहों का शपथ के साथ जाँच नहीं कर सकता या अन्य कोई सबूत स्वीकार नहीं कर सकता। यह काम केवल एक संयुक्त संसदीय दल (जेपीसी) कर सकता है। यह पक्ष कांग्रेस पार्टी ने 15.11.2018 को की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रखा था।
यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी कभी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नहीं गई और निरंतर जेपीसी जाँच की मांग करती रही।
2. यहां तक कि दिनांक 14.12.2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया कि यह उचित फोरम नहीं है और सुप्रीम कोर्ट मूल्य, विशेषताओं एवं तकनीकी उपयोगिता के मामलों पर फैसला नहीं ले सकता। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि इसका न्यायक्षेत्र सीमित हैः
Para 12: “It was also made clear that the issue of pricing or matters relating to technical suitability of the equipment would not be gone into by the Court.”
Para 15: “It is in the backdrop of the above facts and the somewhat constricted power of judicial review that, we have held, would be available in the present matter that we now proceed to scrutinise the controversy raised”
Para 33: “Once again, it is neither appropriate nor within the experience of this Court to step into this arena of what is technically feasible or not.”
Para 34:“We, however, make it clear that our views as above are primarily from the stand point of the exercise of the jurisdiction under Article 32 of the Constitution of India which has been invoked in the present group of cases.”
इस बातों के मद्देनजर मोदी सरकार ने जिस प्रकार खुद को ‘क्लीन चिट’ दे डाली, वो बिल्कुल भी तर्कहीन और निराधार है।
मोदी सरकार से देश इन 11 प्रश्नों के जवाब मांग रहा है :
1. पैरा 25 में सुप्रीम कोर्ट ने कैग की रिपोर्ट, पीएसी द्वारा इसकी जाँच एवं कैग रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का उल्लेख किया। सच्चाई यह है कि इस मामले में कैग की कोई रिपोर्ट नहीं। पीएसी के चेयरमैन, श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने बताया कि न तो पीएसी को कैग रिपोर्ट मिली और न ही पीएसी में ऐसी किसी कैग रिपोर्ट पर चर्चा हुई या संसद को पेश की गई। चूंकि ऐसी कोई कैग रिपोर्ट थी ही नहीं, इसलिए क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसले में एक सुधारी न जा सकने वाली कमी नहीं थी? क्या मोदी सरकार कोर्ट में खेल नहीं खेल गई?
2. पैरा 32 और 30 में सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड किया कि रिलायंस एवं डसॉल्ट एविएशन के बीच ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के लिए समझौता साल, 2012 से चल रहा था। यह एक बड़ा झूठ है।
रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का गठन 28 मार्च, 2015 को हुआ था और इसकी सब्सिडियरी कंपनी, रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड (जिसका उल्लेख सुप्रीम कोर्ट ने किया) का गठन 24 अप्रैल, 2015 को किया गया। इसलिए रिलायंस डिफेंस (जो पैरेंट कंपनी है) प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 10 अप्रैल, 2015 को लड़ाकू जहाजों की खरीद की घोषणा करने के 13 दिन पहले ही अस्तित्व में आई। रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर इसके 14 दिन बाद अस्तित्व में आई, न कि सन, 2012 में।
‘ऑफसेट पार्टनर’ चुनने बारे सुप्रीम कोर्ट को गुमराह क्यों किया गया?
3. पैरा 32 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रेंच प्रेसिडेंट, फ्रांस्वा ओलांद के इस बयान कि रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने का दबाव भारत सरकार ने डाला, को हर पक्ष ने अस्वीकार कर दिया। फ्रेंच प्रेसिडेंट, फ्रांस्वा ओलांद कभी भी अपने बयान से वापस नहीं हुए और न ही इसे खारिज किया। 21.09.2018 को जब इस बारे स्पष्टीकरण मांगा गया, तब श्री ओलांद और उनके ऑफिस ने फिर से उनका यही बयान दोहरा दिया। 27.09.2018 को फ्रांस के वर्तमान प्रेसिडेंट, इमान्युअल मैक्रॉन ने अपने पूर्ववर्ती, फ्रांस्वा ओलांद के बयान को खारिज करने से इंकार कर दिया। प्रेसिडेंट, फ्रांस्वा ओलांद के बयान को खारिज किए जाने का झूठ मोदी सरकार ने क्यों बोला?
4. पैरा 32 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एचएएल की किसी विशेष भूमिका पर विचार नहीं किया गया था। यह सही नहीं।
i. 13 मार्च, 2014 को एचएएल एवं डसॉल्ट एविएशल के बीच ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के क्रियान्वयन के लिए वर्कशेयर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। यह एक लिखित समझौता था।
ii. 25 मार्च, 2015 को (प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने की घोषणा करने के 14 दिन पहले) डसॉल्ट के सीईओ इंडियन एयर फोर्स चीफ की मौजूदगी में एचएएल की फैक्ट्री में गए और राफेल सौदे में एचएएल और डसॉल्ट के बीच ऑफसेट समझौते की पुष्टि की। यह महत्वपूर्ण बातें छिपाकर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह क्यों किया?
5. पैरा 20 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं का यह दावा रिकॉर्ड किया कि आईजीए के तहत एक अनिवार्य ‘सोवरेन गारंटी’ की जगह फ्रेंच सरकार द्वारा एक कच्चा दस्तावेज, ‘लैटर ऑफ कम्फर्ट’ दिया गया। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अंधेरे में क्यों रखा?
6. पैरा 3 में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल (डीएसी) ने अनुमति दी और मोदी सरकार ने 10.04.2015 को 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने की घोषणा की। लेकिन डीएसी 13.05.2015 को, यानि मोदी सरकार की घोषणा के एक माह बाद मिली। तो फिर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह क्यों किया?
7. पैरा 23 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रांस के प्रेसिडेंट, ओलांद द्वारा 21.09.2018 को खुलासा किए जाने से पहले इस सौदे पर किसी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी। यह तथ्य गलत है। कांग्रेस पार्टी ने घोटाले का खुलासा 23.05.2015 को और उसके बाद अनेक बार किया। सुप्रीम कोर्ट के सामने ये तथ्य न रखकर उसे गुमराह क्यों किया गया?
8. पैरा 25 में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि एयर फोर्स चीफ ने राफेल सौदे का मूल्य बताने पर आपत्ति दर्ज की है। यह सही नहीं, क्योंकि न तो आईएएफ चीफ सुप्रीम कोर्ट के सामने आए और न ही उन्होंने कोई शपथपत्र दिया। मूल्य के संबंध में आईएएफ के किसी भी अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट को कोई भी दस्तावेज या हलफनामा नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट को गलत जानकारी किसने दी?
9. पैरा 22 में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि राफेल लड़ाकू जहाजों की संख्या 126 से घटाकर 36 करने का निर्णय एक पॉलिसी डिसीज़न था। लड़ाकू जहाजों की संख्या 126 से घटाकर 36 करके देश की सुरक्षा से समझौता करने का कारण क्या है? इस बारे एयरफोर्स से परामर्श क्यों नहीं लिया गया?
10. पैरा 33 में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रोसीज़र, 2013 के अनुसार, एल1 वेंडर (डसॉल्ट) अपना ऑफसेट पार्टनर चुन सकता है। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह तथ्य क्यों छिपाया कि यह शर्त डीपीपी-2013 में बदलाव करके 05.08.2015 को डाली गई थी, यानि 10.05.2015 को 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने की घोषणा किए जाने के बाद?
11. पैरा 25 में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राफेल ‘कमर्शियल रूप से फायदेमंद सौदा’ है। कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान तय किए गए 126 लड़ाकू जहाजों और मोदी सरकार के दौरान तय किए गए 36 जहाजों में भारत के लिए खास इन्हाँसमेंट, हथियार एवं एवियोनिक्स एक समान हैं, तो फिर एक जहाज की कीमत 526 करोड़ रु. से बढ़कर 1670 करोड़ रु. कैसे हो गई?
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